बस में चोरी और आदमी का साहस

अप्रैल 10, 2010

बस में चोरी  और आदमी का साहस


मैं आज कल अपने अपने पुराने ढर्रे पर आ गया हूँ । रोज ऑफिस से लेट घर जाना एक तरह की आदत हो गयी है । और अगर थोडा पहले जाता हू तो थोडा सा अच्छा भी नहीं लगता है । और इसके पीछे एक कारण  और भी है वो है बस का ना मिलना । तो ऑफिस में ही मीटर डाउन किये रहता हूँ ।  इससे दो फायदे होते है एक तो लोगो को लगता है की मैं वर्कअल्कोहलिक हूँ और दूसरा ऑफिस से उस टाइम निकलता हूँ  की बाहर जाऊ और स्टैंड पर खड़ा हूँ और बस के अंदर । ये तो वही हुआ एक तीर से दो शिकार । कल भी कुछ ऐसा ही किया और  बड़ा अच्छा भी लगा । मेरे सीनियर ने मजाक मजाक में कह भी दिया की बेटा ज्यादा काम न किया कर लोंगो पर दुष्प्रभाव भी पड़ता है । ये बड़ी ही छूत की बीमारी है और ऑफिस में बड़ी जल्दी फैलती है । ये रेडीयेशन से भी तेज असर करती  है । मैंने सोचा की ये बात बता रहे है या डरा रहे है पर जो भी हो मुझे लगा सिखा सहे है । तो मैंने रेंचो जी की भाँती उस ज्ञान को भी अर्जित करने की कोशिश की और सफल भी हो ही गया । खैर बस में आज कुछ ज्यादा भीढ़ नहीं लगी । मुझे कारण तो बताना है कारण ये है की एक बस जा चुकी है । और भीढ़ के कारण मैं चढ नहीं पाया । और बाकी लोंगो तो  चढ गए और  बस स्टैंड अपने आप खाली हो गए । तो मैंने भी दूसरे बस का इंतज़ार करने  लगा पर इंतज़ार इंतज़ार नहीं कर पाया और एक के जाते ही दूसरी बस आ गयी । मैं बड़ी ही शराफत के साथ बस में चढा । पर आज होनी को कुछ और लिखा । किसी ने बस में किसी का पर्स मार लिया अब तो वो दहाड़ मार मार कर रोने लगा । रोना स्वाभाविक था क्योंकि शायद उसमे उसके काफी रूपय थे और अगर आपकी जेब मैं कभी भुले भटके 5 का नोट भी मिल  जाये तो 500 के नोट के बराबर खुशी देता है उसी तरह कभी 5 रूप गिर जाये तो वो 500 की याद दिला देता है । और उस बेचारे को तो लगभग 1000 का नुक्सान हुआ था पर उसने हिम्मत नहीं हारी । उसे एक नहीं 2 लोंगो पर शक हुआ था उसने तुरंत 100 नंबर पर फोन किया और 5 मिनट में बस के सामने 2 हट्टे कट्टे पुलिस के जवान मोटरसाइकिल लिए खड़े थे । अब तो एक साथ चेक्किंग का दौर शुरू हुआ तो लगभग १ घंटे बाद जा कर एक अच्छा सा दिखने वाला आदमी पकड़ा गया । साथ में उसका पर्से भी मिल गया । उस आदमी के चेहरे पर बड़ा संतोष था और दूसरों के चेहरों पर असंतोष क्योंकि उस अमनी की वजह से उनको १ घंटे की देर हो गयी । सब यही सोच रह थे की अब तक घर पहूँच जाता या अभी टीवी पर आईपीएल मैच देख रहा होता । सच कहू तो एक दो बार मेरे मन मैं भी ये ख्याल आया । पर जब उस आदमी की बदहवास हालत देखता तो वो ख्याल मन में ही खा जाता । उसके बाद जो बस चली फिर तो बस में एक ही बात थी पर्से और वो आदमी । अब हर कोई यही कह रहा था को बड़ा अच्छा काम किया तुमने ऐसा ही करना चाहिए । इत्यादि इत्यादि और वो आदमी अभी भी  अपने आंसु पोछ रहा था तो कभी अपना पर्से  देख रहा था । पर उसके चेहरे पर जो संतोष था वो सबसे तेज था । 

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4 टिप्पणियाँ

  1. क्या बात है.....
    सहसा ही यकीं करने को नहीं होता....
    पर एसी घटनाएँ होती ही इतनी कम हैं की सुन कर आश्चर्य ही होता है...

    सोचे की यदि एसा अदम सहस हर कोई करे, और हमारी पोलिस हमेशा ही इतनी ही चपल रहे...

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  2. इसी तरह मजेदार एवं जागरुक वाकयात सुनते रहें...

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  3. अच्छी प्रस्तुति। बधाई। ब्लॉगजगत में स्वागत।

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  4. इस नए चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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