सगाई विशेषांक कविता

दिसंबर 14, 2010

सोमवार को मेरे एक दोस्त की सगाई थी पर कुछ कारणवश जा ना सका तो  उसको ये एक तुच्छ सी कविता समर्पित करता हूँ और उम्मीद करता हूँ की वो अपनी शादी तक मुझे याद रखेगा और अपनी शादी का लड्डू मुझे भी चखायेगा ........आगे की कविता प्रस्तुत है ......


सगाई विशेषांक

कुछ दिन खुशी से और जी लो
कुछ दिन खाना खुद पका लो
या उसमे थोड़ी बहुत नुक्स निकाल लो
कुछ दिन बिना बटन के शर्ट डाल लो
पुराना ही जुराब पैरों में चढ़ा लो
स्वेटर झाड़ कर नया बना लो
बिना नहाये खाना खा लो 
ब्रुश को भी जाले लगा लो
बिना पॉलिश के जूते चमका लो
घर के सामान को थोडा और फैला दो
अभी तो बस मंगनी हुई है जनाब
आपकी शादी हो जायेगी जब
तो इन सबके लिये दिल मचलेगा
और जब किसी को करते देखोगे, ऐसा तो
दिल पुराने दिनों के लिये तड़पेगा

सगाई की आपको अब लाख लाख बधाई
आपके याद में हमने ये कविता बनायीं
सब लोग मिल कर करो मेरा हौसलाअफजाई
क्योंकि इसके बाद मेरा नंबर है भाई
©csahab

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