दस्तक

जनवरी 25, 2011


दस्तक

दिल पर दस्तक दे रहा है
तेरा कोई,
पूछता हूँ तो कहती है
मैं तेरा ही साया हूँ,
एक बार फिर तुझसे
मिलने आयी हूँ,
क्यों छुपता है मिलने से
तुझे हाल बताने आयी हूँ,
जिस्म पर न सही
दिल पर तेरा आज भी कब्ज़ा है,
बस दूर हूँ तुझसे
ये खता हमारी है,
ऑंखें बंद करू तो
चेहरा आज भी तेरा देखती हूँ,
पुरानी यादों का किस्सा
आज भी चलता है,
वो मेरी बात पर
हौले से मुस्कुराना,
ना चाहते हुए
मेरी बात मानना,
मेरे बालों के साये मे
तेरा गुनगुनाना,
तेरा मेरे लिये
नये नये शब्द बनाना,
जाड़े की सुनहरी धूप में
तेरा यादों का ताना-बाना,
आज भी उन्हें सोच कर
दिल का किसी कोने मे मुस्कुराना,
सोचती हूँ वो रात दुबारा आ जाये
तेरे आगोश की महक फिर ताज़ा हो जाये,
तू मुझे बेवफा कहे
या कुछ और नाम दे,
पर मेरी वफ़ा का नाम आज भी तू है
तुझे छोड़ कर
तेरे साथ ही जीती हूँ,
तू मेरे साथ नहीं तो क्या
मेरी यादों में तू हरपल रहता है,
दस्तक दे रही हूँ
अब तो दरवाजे खोल दे,
बिना पूछे आज भी
नहीं आना चाहती,
रूह बन गई तो क्या
आज भी तेरी आदतों से वाकिफ़ हूँ,
तेरी याद आज भी मुझे
बांधे रखती है,
वो खुशबू का साया मैं हूँ
जो कभी-कभी तेरे पास से गुजरता है,
बन कर झौंका हवा का
आज भी तुझे महसूस करती हूँ,
तेरे आगोश की कशिश में
सिमटने के लिये आज भी तड़पती हूँ ।

©csahab

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