कौन हूँ मैं ?

जुलाई 05, 2011



कौन हूँ मैं,
जानता नहीं हूँ,
अँधेरे गर्भ से निकला,
महीनों तक पला,
नाल से किसी से था जुड़ा,
क्यों हुई उत्पत्ति मेरी,
अंजान था मैं, बेखबर
जब प्रकाश ने छुआ मुझे,
ऑंखें हुई छुईमुई,
जुदा कर दिया नाल से मुझे,
फिर भी अंजान रहा बरसों तक,
कौन हूँ मैं ?
,, ब से गुनगुनाता हुआ,
अपनी ही आवाज़ से खुश होता रहा,
तब ना खुद को जानने की समझ थी,
न ही खुद को जानने की ईच्छा,
वक्त के साथ सोचता गया,
कौन हूँ मैं ?
जब हुआ बड़ा,
सोचा अब जानूंगा खुद को,
तब कोई आया जीवन में ऐसा,
जिसने कहा बड़े प्यार से,
जानती हूँ मैं तुम्हे, तुझसे बेहतर
मैंने भी खुद जानने के लिए उसी को सहारा बनाया,
जब भी जानना होता खुद को,
पहुँच जाता उस डगर,
एक दिन वो छोड़ कर चली,
रह गया अकेला तनहा उदास ,
एक बार फिर लग गया जानने में,
कौन हूँ मैं ?
छोड़ कर सब कुछ जीने लगा जिंदगी,
वक्त के साथ लोग गुजरते
कुछ पुराने टूटे तो नए बनते गए,
कोई टूट कर भी जुड़ा रहा, कोई जुड कर भी टूटा रहा,
जिंदगी की इतनी आपाधापी में
खुद को मैंने जाना है,
जीवन जीने आया हूँ, जीवन जी के जाना है,
यही सार है जीवन
यही हूँ मैं ..
फिर भी तलाश मेरी अधूरी सी लगती है...........
खुद को जानने की कसक आज भी दिल में रहती है .....

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