भरी मेट्रो में जेब खाली

अगस्त 05, 2011


मेट्रो में आजकल भीड़ ऐसे बढ़ रही है जैसे रेलवे स्टेशन में चूहे. हर कोई मेट्रो से ही जाने की जिद करता है. दिल्ली तो छोडिये बाहर का भी कोई दिल्ली आता है तो सबसे पहले मेट्रो का ही जिक्र करता है. मेट्रो है भी शानदार नए चमचमाते डिब्बे, एसी का आनंद, कम किराया और बस से जल्दी पंहुचाने की गारंटी. आप अगर एक बार दिन में मेट्रो मैं बैठ गए, फिर आप भी मेट्रो के दीवानों की लिस्ट में आ जायेंगे.

पर मेट्रो का असली हाल जानना हो तो, जो रोज सफर करते हैं उनसे जानिए. मैं कई ऐसे लोगों को जानता हूँ जो दिल्ली के एक छोर से दूसरे छोर की यात्रा करते हैं. उन्हें मेट्रो से जाना पसंद है क्योंकि बिना पसीना बहाये वो अपने ऑफिस या घर पहुच जाते हैं. और अगर माने तो एक फायदा और भी है, अगर आप लेट हो गए तो सारा का सारा ठिकरा फोड़ दीजिए मेट्रो पर. सबसे पहले यह कि जिस स्टेशन से में मेट्रो में चढ़ता हूँ, वहां की चेकिंग मशीन खराब थी तो सारी की सारी पुलिस अपने नाजुक-नाजुक हाथों से एक-एक व्यक्ति को चेक कर रही थी. इस चक्कर में भीढ़ इतनी हो गयी की गेट से १ किलोमीटर से थोड़ा कम लंबी लाइन लग गयी. यह तो था एक दिन का बहाना दूसरे दिन आप कह सकतें हैं की आज मेट्रो ही धीरे धीरे चल रही थी. अब आपके बॉस मेट्रो को तो कुछ कह नहीं सकते साथ में वो यह भी जोड़ देंगे की हाँ मैंने देखा था एक मेट्रो स्टेशन पर सच में भीढ़ थी. तो आप तो बच गए.


पर वो लोग नहीं बच पाए जो कई महीनों से मेट्रो में लगे हुए थे साफ़ सफाई के लिए. आखिर उन्हें पुलिस ने पकड़ ही लिया. मेट्रो में भीढ़ बढ़ने से कुछ विशेष व्यवसाय को बढ़ा धक्का लगा है. मैंने कई बार देखता हूँ की रेडलाइट पर सामान बेचने वाले भी मेट्रो का जबरदस्त इस्तेमाल करते हैं. वो किताब, कार स्टीरिंग पर लगने वाली ग्रिप और बहुत कुछ के साथ बड़े आराम से गुड़गांव और दूर-दूर तक ले जाते हैं और रोजाना सफर करते हैं. मेट्रो से जिस धंधे को सबसे ज्यादा चोट लगी है, वो है पॉकेटमारने के बिजनेस को. क्योंकि अब लोग ज्यादा से ज्यादा मेट्रो में सफर करते हैं और मेट्रो में लगभग हर जगह कैमरे लगे हुए हैं तो उनके लिए थोड़ा मुश्किल है. पर कहते हैं ना हर मुश्किल काम हिम्मत करने से ही आसान होता है. तो पॉकेटमारों ने भी हिम्मत करी और बनाने लगे मेट्रो को निशाना.

मुझे मेट्रो में सफर करते-करते करीब ६ महीने हो गए हैं, और इन 6 महीनों में मैंने हर हफ्ते किसी ना किसी का फोन गायब होते देखा है चूँकि में इसका भुक्तभोगी था (देखे मेरा ये अंक) तो अब मैं अपना फोन अपने हाथ में ही ले कर मेट्रो के कोच अंदर जाता हूँ. पर राजीव चौक, सेंट्रल सैकेट्रीएट स्टेशन ऐसे हैं जहां इतनी भीढ़ होती है की हर किसी को मुंबई की लोकल ट्रेन याद  आ जाती है. पर कुछ किया नहीं जा सकता है. मतलब आप मान सकते हैं की तकरीबन  50 फोन से ज्यादा हर रोज मेट्रो से चोरी किये जाते होंगे और मेरे ख्याल से सिर्फ 10या20 की ही FIR  दर्ज होती होगी.
हालाँकि मेट्रो के स्टाफ ने अभी कुछ दिन पहले तकरीबन 30 लोगों को मेट्रो में चोरी करने के लिए पकड़ा. जिसमे अधिकतर महिलाएं थी. सबसे ज्यादा फोन मेट्रो में चढ़ते और उतरते वक्त गायब होते हैं ऐसा मैंने देखा है. यही वो वक्त है जब आपको सबसे सतर्क रहना है पर हम तो ऐसे ही हैं के तर्क पर हम जमे रहते हैं और अपनी जेब खाली करते हैं भरी हुई मेट्रो मैं सवारी करते हैं.

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