बस में चाकूबाजी और सबकी बेरूखी
बस का सफर अब सफर नहीं कहर हो गया है । आज मैं अपने यात्रा का जिक्र नहीं करूँगा क्योंकि कल से ले कर आज सुबह तक जो भी हुआ वो मुझे मेरे ऑफिस पहुचने तक याद था । पर ऑफिस पहुच कर सब भूल गया जब मेरे से एक सीनियर का लहुलुहाँन बदन देखा । किसी ने बस मैं उनसे मोबाइल छिनने की कोशीश की और वो उनसे उलझ गए तो उन लोंगो ने चाकू मर दिया । ये रोज की तरह होने वाली घटना है पर मोबाइल के लिए चाकू मार देना इसे खास बना देती है । आज सुबह की ही बात है वी भी मेरे ही घर के पास रहते है और कभी कभी मेरे साथ ही ऑफिस आते है । रोज की तरह में जब घर से निकला और जब में बस मैं चढ चुका था और बस निकल आधे रास्ते में थी तो उनका फोन आया । पर में बस से बहुत आगे निकल गया था तो उन्हें अकेले जाना पड़ा । में भी इस बात को आया राम गया राम की तरह भूल गया और अपनी बस के तमाम मुसाफिरों की तरह सफर करने लगा । आज कोई एक्सीडेंट हो गया था जिसके कारण बहुत ट्रेफिक था और मुझे ऑफिस पहुचने आधे घंटे की देरी हो गयी । पर मेरे सीनियर इतने भाग्यशाली नहीं थे । वो जिस बस में चढ़े उसमे २ मोबाइल पहले से चोरी हो चुके थे तो वो भी थोड़े सावधान थे । पर यही सावधानी उनको भारी पड़ी । जब उनका मोबाइल निकाला गया तो उन्होंने उसे रंगे हाथपकड़ लिया । पर कहते है न की मुसीबत कभी अकेले नहीं आती वो भी अकेला नहीं था पुरे ग्रुप के साथ था । पर मेरे सीनियर भी कम नहीं थे वो भी सब पर टूट पड़े पर अकेला चना जैसे भाढ नहीं फोड़ सकता ये भी सबसे नहीं निपट सके । और जब उन लोंगो देखा की ये हम पर भारी हो रहे हैं गुंडों ने उन्हें चाकू मर दिया । उपर वाले का शुक्र था की चाक़ू कोहनी पर लगी न की पेट पर । फिर तो वो भी मोबाइल को भूल कर खुद तो देखने लगे और जैसे तैसे बस से उतर कर हास्पिटल को भागे । मरहम पट्टी के बाद ऑफिस आये तो वही पुरानी कहानी । पुलिस के पास जाने से क्या होगा कुछ नहीं होगा फलां चिला । पर मैं इसका विरोधी हूँ कम से कम एक प्रार्थना पत्र तो पुलिस स्टेशन । फिर काफी जद्दोजेहद के बाद और उन्होंने अपने पत्रकार मित्रों से विचार विमर्श के बाद F.I.R कराने को निर्णय लिया । अब तो जैसे पूरा मीडिया हो उनके पीछे लग गया हो । उनके किसी मित्र ने डी.एस.पी को फोन कर दिया तो जब तक हम पुलिस स्टेशन पहुचे तो पूरा महकमा हमारा इंतज़ार कर रहा था । चूँकि डी.एस.पी का फोन था तो हमारी आवभगत भी की गयी और बस वाले को भी ले आया गया । उसको अंदर कर के पूछताछ के लिए बंद किया और हमें कल आने को कहा गया और विश्वास दिलाया की फोन मिल जायेगा । मेरा मानना है की घटना की खबर पुलिस को जरूर देनी चाहिए हो सकता है की उससे आपका कोई प्रत्यक्ष फायदा न हो पर फायदा तो होता है । और आप दूसरों के साथ साथ अपनी ही मदद कर रहे है । और अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो समझ लीजिए आप लुटेरो का हौसला और मजबूत कर रहे है । आज अगर मेरी बारी है कल आपकी भी हो सकती है ।
बस का सफर अब सफर नहीं कहर हो गया है । आज मैं अपने यात्रा का जिक्र नहीं करूँगा क्योंकि कल से ले कर आज सुबह तक जो भी हुआ वो मुझे मेरे ऑफिस पहुचने तक याद था । पर ऑफिस पहुच कर सब भूल गया जब मेरे से एक सीनियर का लहुलुहाँन बदन देखा । किसी ने बस मैं उनसे मोबाइल छिनने की कोशीश की और वो उनसे उलझ गए तो उन लोंगो ने चाकू मर दिया । ये रोज की तरह होने वाली घटना है पर मोबाइल के लिए चाकू मार देना इसे खास बना देती है । आज सुबह की ही बात है वी भी मेरे ही घर के पास रहते है और कभी कभी मेरे साथ ही ऑफिस आते है । रोज की तरह में जब घर से निकला और जब में बस मैं चढ चुका था और बस निकल आधे रास्ते में थी तो उनका फोन आया । पर में बस से बहुत आगे निकल गया था तो उन्हें अकेले जाना पड़ा । में भी इस बात को आया राम गया राम की तरह भूल गया और अपनी बस के तमाम मुसाफिरों की तरह सफर करने लगा । आज कोई एक्सीडेंट हो गया था जिसके कारण बहुत ट्रेफिक था और मुझे ऑफिस पहुचने आधे घंटे की देरी हो गयी । पर मेरे सीनियर इतने भाग्यशाली नहीं थे । वो जिस बस में चढ़े उसमे २ मोबाइल पहले से चोरी हो चुके थे तो वो भी थोड़े सावधान थे । पर यही सावधानी उनको भारी पड़ी । जब उनका मोबाइल निकाला गया तो उन्होंने उसे रंगे हाथपकड़ लिया । पर कहते है न की मुसीबत कभी अकेले नहीं आती वो भी अकेला नहीं था पुरे ग्रुप के साथ था । पर मेरे सीनियर भी कम नहीं थे वो भी सब पर टूट पड़े पर अकेला चना जैसे भाढ नहीं फोड़ सकता ये भी सबसे नहीं निपट सके । और जब उन लोंगो देखा की ये हम पर भारी हो रहे हैं गुंडों ने उन्हें चाकू मर दिया । उपर वाले का शुक्र था की चाक़ू कोहनी पर लगी न की पेट पर । फिर तो वो भी मोबाइल को भूल कर खुद तो देखने लगे और जैसे तैसे बस से उतर कर हास्पिटल को भागे । मरहम पट्टी के बाद ऑफिस आये तो वही पुरानी कहानी । पुलिस के पास जाने से क्या होगा कुछ नहीं होगा फलां चिला । पर मैं इसका विरोधी हूँ कम से कम एक प्रार्थना पत्र तो पुलिस स्टेशन । फिर काफी जद्दोजेहद के बाद और उन्होंने अपने पत्रकार मित्रों से विचार विमर्श के बाद F.I.R कराने को निर्णय लिया । अब तो जैसे पूरा मीडिया हो उनके पीछे लग गया हो । उनके किसी मित्र ने डी.एस.पी को फोन कर दिया तो जब तक हम पुलिस स्टेशन पहुचे तो पूरा महकमा हमारा इंतज़ार कर रहा था । चूँकि डी.एस.पी का फोन था तो हमारी आवभगत भी की गयी और बस वाले को भी ले आया गया । उसको अंदर कर के पूछताछ के लिए बंद किया और हमें कल आने को कहा गया और विश्वास दिलाया की फोन मिल जायेगा । मेरा मानना है की घटना की खबर पुलिस को जरूर देनी चाहिए हो सकता है की उससे आपका कोई प्रत्यक्ष फायदा न हो पर फायदा तो होता है । और आप दूसरों के साथ साथ अपनी ही मदद कर रहे है । और अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो समझ लीजिए आप लुटेरो का हौसला और मजबूत कर रहे है । आज अगर मेरी बारी है कल आपकी भी हो सकती है ।