जींस की माया, बदल दी काया और स्टैंड पर भीड़ का साया

अक्तूबर 21, 2010

आज कल कुछ दिनों से दिन बड़े मासूमियत से गुज़र जाते हैं । पता की नहीं चलता की कब दिन गुज़रेगे और मुझे ऑफिस से घर जाना है और जब घर पर रहता हूँ पता ही चलता की कब रात कट गई, सुबह हुई और फिर ऑफिस जाने का मन नहीं करता है । पर प्रकृति का जो नियम है उसको आप कब तक पीठ दिखायेंगे कभी तो सामने आने होगा उसके यही सोच कर मैं रोज उसका सामना करता हूँ और देर से ही सही पर ऑफिस जाने की रोज वही तैयारी करता हूँ ।

इन सबके बीच मैंने एक चीज़ देखी की जब आपका मन किसी विशेष काम या जगह में नहीं लगता तो हर कोई उसी के बारे में ज़िक्र करता है । कभी-कभी कुछ लोग अनजाने में करते है, कभी कुछ जानबूझ कर करते है । पर अगर आप उसी चीज़ को आनंद में लेना शुरू कर दें तो सारी तरह की चर्चा खत्म हो जाती है ।

खैर मेरे बस का सफर जारी है और अब कॉमन वेल्थ भी खत्म हो गए हैं । पर उसको कराने वालों के पीछे अब खेल का खेल हाथ धो कर पीछे पड़ गया है । पर एक खेल में जहाँ कईओं के मुह बीप-बीप से बाहर गए वन्ही बहुत से लोगों को ब्लू लाइन बसों से बहुत राहत मिली । शीला जी ने भी दिल्लीवासियों को धन्यवाद बाद दिया की कॉमन वेल्थ में सहयोग देने के लिए शायद ब्लू लाइन बसों को पूरी तरह हटा लेना उसी का उपहार है । शीला जी ने सोचा की दिल्ली वाले भी याद करेंगे की बड़े दिल वाले मुख्यमंत्री ने ब्लू लाइन को हटा दिया या फिर इसके पीछे खेल पैसों का है जो दिल्ली के सरकारी बस ने खेलों के दौरान कमाए । पर कोई नहीं हो सकता है ब्लू लाइन बंद होने से रोज़ ना जाने कितने मोबाइल चोरी होने से बचे, ना जाने कितनी महिलाओं को रहत मिली होगी जो रोजाना मज़बूरी में ब्लू लाइन बस में न जाने क्या क्या सहती हैं ।

आज कल लड़कीयों मैं न जाने क्या फैशन का तडका लगा गया है ये सब पश्चिमी हवा है है आधुनिकता की नई परिभाषा । टीवी में जो कपडे आये नहीं वो अगले दिन आप किसी न किसी लड़की पहने देख सकते हैं । मेरे ख्याल से उनको भी अच्छा लगता है जब वो नये कपडे पहन कर निकले और लड़के पलट-पलट कर देंखे । ये उनकी सोच है और लड़के तो होते ही इस मामले में बेरोजगार, उनको  लागता है कोई उनको ऐसा ही कोई रोजगार दे दे । चाहे उनको तनख्वाह कम ही क्यों न मिले वो काम करने को तैयार हो जायेंगे ।
हुआ कुछ यूँ की मैं स्टैंड पर अपनी बस के इंतज़ार में खड़ा था । सामने एक बड़ी शालीन से युवती खड़ी थी जींस लगता था जैसे खाल से साथ सील दी गई हो । तभी सामने से एक स्कूटी आ कर रुकी, शायद वो उसकी कोई दोस्त होगी । दोनों साथ जाने की तैयारी करने लगी मुझे देख कर अच्छा लगा की दोनों हैलमेट पहन कर जाने की तैयारी में थी पर उसके बाद जो हुआ वो मेरे पुरे दिन की खुराक थी । ड्राईवर सीट वाली तो आराम से बैठ गई पर पिछली सीट पर जिसे बैठना था वो उस पर पहुच ही नहीं पा रही थी क्योंकि उनकी जींस इतनी टाईट थी की उनसे उस पर बैठाजी नहीं जा रहा था । उन्होंने सभी तरीकों से प्रयास किये पर वही ढाक के तीन पात । अब तो सबके सब देखने वालों के लिए ये एक खेल हो गया था । कुछ तो उनकी मदद करने भी पहुँच गए । कम से कम 15 मिनट की जद्दोजेहद के बाद ड्राईवर हो हटा कर पहले खुद बैठी फिर ड्राईवर वाली मैडम बैठी और साथ में २ लोंगो ने स्कूटी की संभाले रखा ।

मुझे लगा की इस तरह जींस तब इतनी परेशानी वाली है तब तो मैडम को दैनिक जीवन में न जाने क्या क्या देखन पड़ा होगा । पर बस स्टैंड जो हुआ उससे में उन दोनों नहीं भूल पाउँगा ।  

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