रघु, राम और रोडीज

नवंबर 01, 2011


रविवार की रात का कोई 12 बजा होगा, आखों से नींद कोसों दूर थी और लगता भी नहीं की जल्दी नींद आने वाली थी, क्योंकि कल मेरी मुलाकात उन लोगों से होनी थी जो आज देश में अपना एक मुकाम रखते हैं. पिछले कुछ सालों से उन्हें लगातार टीवी पर देख रहा हूँ, यदा-कदा टिप्पणी भी
करता था पर अपने दिल में ही रखता या फिर सिर्फ करीब के मित्रों से ही बात करता. उनकी कहानी भी कोई १० साल पुरानी है. जीरो से हीरो का सफर हमेशा कितना सुखद होता है. ये शायद उनसे बेहतर कोई नहीं जानता. उनके विकराल कठोर चेहरों ने कार्यक्रम (प्रोग्राम) को एक नया रूप दिया. और उन्हें एक नए ही रूप में पेश किया. उन्होंने एक साधारण से प्रोग्राम को एक नए आयाम पर पंहुचा दिया. मैं वक्त से पहले ही जाग गया. ऐसा मेरे साथ अकसर नहीं होता था. सारे काम निपटा कर मैं audition  वाली जगह पर करीब 10 बजे पंहुचा तो कम से कम 5 हजार से ज्यादा लड़के और लड़कियां लाइन लगाए हुए गेट के बाहर खड़े थे. उनमे जोश कूट-कूट कर भरा हुआ था. कोई भी हटने का नाम नहीं ले रहा था. धूप भी उनकी परीक्षा लेने में लगा हुआ और उनके इस इम्तिहान को और कठिन बना रहा था पर सारे भावी रोडीज डटे हुए थे अपनी राहों में. उन्हें ना धूप कि परवाह थी ना पानी की, उन्हें तो सिर्फ परवाह थी रोडीज की. मैन गेट के बाद जब हम अंदर पंहुचे तो बाहर से ज्यादा भीड़ अंदर थी. बैरीकेडिंग उनको रोकने के बनी थी जो उन्हें रोक पाने में बेकार थी. स्टेज पर तरह-तरह के Engaging प्रोग्राम चल रहे थे. उसके बाद उनको उपहार बाँटें जा रहे थे. कुछ लोग दीवार से चिपक कर प्रैक्टिस कर रहे थे कि ग्रुप डिस्कशन में कैसे बोलना होगा, बॉडीलाइन कैसे रहेगी इत्यादि.

Pradip
मैंने भी मौका देख कर कुछ उम्मीदवारों से सवाल पूछने शुरू कर दिए.
मैंने प्रदीप से पूछा की इधर क्यों आये ?
तो वही पुराना सालों से चलने वाला जवाब, मुझे कुछ कर दिखाना है अपनी लाइफ में.
फिर मैंने पूछा की प्रदीप तुम पढ़ लिख कर भी कुछ कर सकते हो फिर रोडीज ही क्यों?
तो वो बोला बस ऐसे ही एक बार टीवी पर आ गया तो लाइफ सेट. टीवी पर के बाद फेम कितनी तेज़ी से मिलता है ये सबको पता है, उतना पढ़ने से नहीं मिलता.










सबसे ज्यादा भीड़ 18 से 26 के युवाओं की थी. ऑडिशन में हर कोई अपने तरीके से तैयारी कर रहा था, कोई उठक-बैठक लगा कर जिम के पैसों को साबित करने में तुला हुआ था तो कोई चुटकुले सुना कर माहौल को शांत और अपने आपको पक्का टाइम पास बताने में. 











क्रू मेम्बर का काम मुझे सबसे ज्यादा अच्छा लगा क्योंकि जहां वो एक तरफ उम्मीदवारों से सख्त थे. वहीँ वो ये भी चाहते थे की कोई बिना ऑडिशन दिए ना जाए. बस उसकी उम्र 18 से कम ना हो. क्रू मेम्बर में प्रोडक्शन और कैमरा यूनिट थी. जिनमे कुछ उपर से नारियल बनने का प्रयास कर रहे थे पर उनको देख कर लगता था की वो अंदर से भी नारियल ही थे. मुझे रोडीज़ क्रू की एक बात सबसे अच्छी लगी की उनको इस बात का बिलकुल भी घमंड नहीं था, वो उतने ही शांत और निर्मल थे जितनी की गहरी नदी होती है. देखने वालों को इसका एहसास ही नहीं होता की वो अंदर कितनी गहरी है. सब से सब अपना तन और मन लगा कर सारे प्रयास कर रहे थे फिर वो चाहे काम बड़ा हो या छोटा.
Roadies crew managing lines 

Activity 

Audition line




ऑडिशन के बाद GD(ग्रुप डिस्कशन) था. इसमें रोडीज की ओर से एक मेंटोर रखा गया था. जो हर प्रतिभागी की योग्यता का आकलन करते थे. ये भी कुछ कम रोचक काम नहीं था क्योंकि मेंटोर को कुछ ही सेकेंड में प्रतिभागी की क्षमता का आकलन करना होता है जोकि छोटा काम नहीं है. आपके पास सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी थी जिसे आपको पूरी शिद्द्त के साथ पूरा करना होता है और इसी पर पूरे शो का दामदार होता है.अभी ग्रुप डिस्कशन में थोड़ा समय था, शायद मेंटोर थोड़ा थक गयी थी. तो मैंने भी सोचा तब तक क्रू मेम्बर का ही पोस्टमॉर्टम किया जाए.
फिर मैंने रोडीज से पिछले ४ साल से जुड़े एक कैमरामैन से बात करना शुरू किया . सबसे पहले तो में उनको अपना परिचय दिया, तो जनाब बड़े ही मजाकिया अंदाज़ में बोले यार पहले आराम से बैठ तो जाओ और पारले जी का पैकेट मेरे ओर बढा दिया. मैंने भी बड़ी ही नजाकत से उनका नाम पूछा और भी शुरू कर दिए सवालों के बाण. मुझे लगा की यही वो मौका है जिस पर में चौका मार सकता हूँ.   
आप कब से रोडीज के साथ है ?
करीब ४ साल से.
कैसा रहा अब तक अनुभव?
अब तक तो अच्छा है ?
अब तक का सबसे अच्छा अनुभव?
रोडीज के साथ काम करिये, आपका हर पल मजेदार और रोचक होगा. यहां एक तरह का संसार है जिसे हम रोडीज कहते हैं और सब उसी के हिस्से और सदस्य है. हम हँसते हैं, झगड़ते हैं, अपने सुख-दुःख बाटते हैं बिलकुल एक परिवार की तरह.
कभी लगा की रोडीज ज्वाइन करके गलत किया क्योंकि काम का कोई वक्त नहीं होता है?
नहीं. शुरू से ही मुझे खुद कोई भी काम करने का टाइम नहीं था बस वही आदत इधर भी है. कभी कभी तो चीजे इतनी तेज़ी से बदलती है की पूछिए मत.
फिर जब मैंने उनकी फोटो के लिए कहा तो जनाब शरमाते हुए बोले अरे नहीं यार फोटो मत लो. फिर भी मैंने ले ही ली फोटो.
Roadies Cameraman 
उसके बाद हम ग्रुप डिस्कशन शुरू हुआ करीब २० लोगों की उसमे बुलाया गया था. उनको लाइन से बैठा दिया गया. फिर शुरू किया गया उनके नज़रिए का आकलन. टॉपिक था क्या स्कूलों में कंडोम मशीन लगानी चाहिए या नहीं. मेंटोर ने जैसे ही टॉपिक बताया कि सारे के सारे लड़के ऐसे टूट पड़े कि मानो भूखे शेर के आगे गोश्त का टुकड़ा रख दिया गया हो. फिर मेंटोर ने सबको समझाया और सबको बोलने के लिए करीब ३० सेकंड दिए. उनको उन्ही ३० सेकंड में बोलना था. कुछ ने थोड़ा समय लिया किसी ने १० सेकंड में ही बता दिया कि उनकी क्या सोच है. तो किसी ने ३० से भी ज्यादा का समय लिया पर अपनी सोच को एक दिशा नहीं दे पाए. खैर हमने हर एक को सुना और देखा. किसी की सोच पर हँसी भी आयी, तो किसी कि सोच पर दया.




उसके बाद हमें बताया गया कि अगर हम सभी ने अपने-अपने हिस्से का काम कर लिया गया हो तो हम रघु और राजीव से अब मिल सकते हैं. मैं बहुत देर से इसी का इंतज़ार कर रहा था. फिर तो मानो मेरे शरीर में फुर्ती आ गयी. हम सब रघु और राजीव से मिलने के लिए आतुर थे.
इसके बाद हमें एक कमरे में ले जाया गया जहां राजीव पहले से बैठे हुए थे. उन्होंने हमारा स्वागत उठ कर किया. और बड़े आदर से एक शिष्ट आगंतुक कि तरह बैठने को कहा. हम अभी बैठना के लिए सीट ढूंढ ही रहे थे कि पीछे से रघु भी आ गए. राजीव और रघु के चेहरे में कुछ खास अन्तर नहीं है पर अगर आप गौर से देखेंगे तो आपको पता चल जायेगा कि कौन रघु है और कौन राजीव? मैंने एक बात और गौर की, राजीव के  चेहरे में एक चुलबुलाहट झलकती है जबकि रघु का चेहरा उपर से सख्त, गम्भीर स्वाभाव होने के साथ थोड़ा बहुत ही दया रहित मालूम होता था. यही वो सब चीजे है थी जो मैंने सबसे पहले गौर करी. फिर उन दोनों के साथ हम सभी लोग बैठ गए. एक राउंड टेबल के चारो तरफ. फिर एक दूसरे से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ. पहले रघु और राजीव ने हम सभी का अभिनन्दन किया. फिर सारी बातचीत एक इंटरव्यू में बदल गयी.
सब एक से बढ़ कर के सवाल पूछ रहे थे.
Raghu & Rajiv @Photo@Christine 
मैंने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए सवाल पूछ ही लिया. मैंने पूछा की क्या अपने सोचा था कि रोडीज इतना हिट होगा या इसको इतना जबरदस्त रेस्पोंस मिलेगा.
राजीव( हँसते हुए)- हाँ... फिर नहीं हमने नहीं सोचा था.
उसके बाद एक सवाल, फिर एक सवाल और कई जवाब. ऐसा करीब १३ मिनट तक चला. मुझे लग रहा था कि रघु और राजीव को मैं बरसों से जानता हूँ. क्योंकि वो जीतने क्रूर और दानव टीवी पर थे यहां उतने ही विनम्र और शालीनता से बातों का जवाब दे रहे थे. किसी उनकी इसी बात पर चुटकी भी लेनी चाही पर उन्होंने कुछ ऐसा किया और कहा कि १० सेकंड के लिए माहौल में सन्नाटा छा गया.


पर जो भी कहिये इंटरव्यू हुआ बड़ा धासु. मैं राजीव के बिलकुल बगल में और रघु के ठीक सामने बैठा था. और अपना कैमरा लगातार ऑन किये हुए था. इसी बीच एक भूतपूर्व रोडीज़ की एंट्री हुई. फिर उन्होंने भी अपने तजुर्बे और आज के दिन का आखों देखा हाल हमें बताया.
अब हमारे जाने का समय हुआ तो उसी के साथ मेरे दिमाग में कुछ सवाल मेरे दिमाग में गूंजे. में जाते जाते अपना कैमरा ऑन रखा और सवाल पूछता रहा. रघु ने भी बड़े ही इत्मीनान से उनका जवाब दिया.
जाते जाते उनके साथ बिताये पल बहुत ही अच्छे थे.
मेरे रोडीज़ का सफर दिल्ली में तो शानदार रहा. कुछ रोडीज़ के दीवानों से मुलाकात और रोडीज़ के पीछे काम करने वाले. फेम से अंजान दीवानों तक सबसे मुलाकात शानदार रही. रघु और राजीव के तो क्या कहने. वो सिर्फ टीवी पर ही इतने सख्त और दयारहित दिखते हैं असलियत में वो बिलकुल इसके विपरीत हैं.
रोडीज़ की सफलता की कामना के साथ मैंने भी रोडीज़ के सेट से फिर कभी, कहीं और मिलने का वादा करके अलविदा कहा.


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