आज कुछ लिखने का नहीं बल्कि गुनगुनाने का मन किया तो सहसा ही पता नहीं कहाँ से चंद्रशेखर आज़ाद याद आ गए और उनपर मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी है उनको आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ आशा है आपको पसंद आएगी
देश को आज़ाद कराने,
की ज़िद जिसने ठानी थी
देश को आज़ाद कराने,
की ज़िद जिसने ठानी थी
उठा कर बन्दूक, चलाकर कर गोली,
लिखनी नयी कहानी थी
भगत बिस्मिल के साथ,
ना जाने कितनी खाक छानी थी
कभी इस शहर कभी उस गाँव में,
जीवन जीना जिसकी निशानी थी
मार खाते हुए नाम आज़ाद
बताना उनकी साहस बयानी थी
पहन कर साधू का चोला
चकमा देना पुलिस को भी हैरानी थी
बाग में जब खुद को घिरा पाया
तो आखिरी गोली खुद पर चलानी थी
आज़ाद हुआ जीवन से आज़ाद जब
पूरे देश में ये चर्चा जुबानी थी
© विपुल चौधरी