चन्द्र शेखर आज़ाद को समर्पित एक कविता
सितंबर 16, 2010आज कुछ लिखने का नहीं बल्कि गुनगुनाने का मन किया तो सहसा ही पता नहीं कहाँ से चंद्रशेखर आज़ाद याद आ गए और उनपर मैंने कुछ पंक्तियाँ लिखी है उनको आपके समक्ष प्रस्तुत करता हूँ आशा है आपको पसंद आएगी
देश को आज़ाद कराने,
की ज़िद जिसने ठानी थी
उठा कर बन्दूक, चलाकर कर गोली,
लिखनी नयी कहानी थी
भगत बिस्मिल के साथ,
ना जाने कितनी खाक छानी थी
कभी इस शहर कभी उस गाँव में,
जीवन जीना जिसकी निशानी थी
मार खाते हुए नाम आज़ाद
बताना उनकी साहस बयानी थी
पहन कर साधू का चोला
चकमा देना पुलिस को भी हैरानी थी
बाग में जब खुद को घिरा पाया
तो आखिरी गोली खुद पर चलानी थी
आज़ाद हुआ जीवन से आज़ाद जब
पूरे देश में ये चर्चा जुबानी थी
© विपुल चौधरी
2 टिप्पणियाँ
बहुत प्रेरक कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
अलाउद्दीन के शासनकाल में सस्ता भारत-१, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
अभिलाषा की तीव्रता एक समीक्षा आचार्य परशुराम राय, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
very bold and interesting.... hats off! to you and ur thoughts
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