बस में भीड़ और विज्ञापन का असर साथ में कॉमन वेल्थ फ्री

सितंबर 23, 2010


बस में भीड़ और विज्ञापन का असर साथ में कॉमन वेल्थ फ्री


आज कल जिधर देखो खुदा ही खुदा है, मैं दिल्ली के रास्तों की बात कर रहा हूँ । आप जिधर देख लो हर तरफ खुदा है और उसमे पानी भरा हुआ है और साथ में वो मच्छर प्रजनन स्थल बने हैं । और उन्हें मीडिया बड़ी ही तन्मंता के साथ दिखा रहा है । मैं भी कभी कभी मान बहलाने के लिए इंडिया टीवी देख लेता हूँ और मीडिया की हरकतों पर  मुस्कुरा लेता हूँ । पर क्या करे अगर, अगर क्या इतना पानी है की मगर भी रह जाये तो किसी को पता नहीं चलेगा । कोई भी दिल्ली वासी का पेट तब तक नहीं भरता होगा जब तक वो कॉमन वेल्थ वालों के खानदान को अपनी जवाब पर ना लाता हो । घर का पानी ना आये तो कॉमन वेल्थ की बीप बीप, पंचर भी होता है तो मैं कईओं को कॉमन वेल्थ की बीप बीप करते देखा है । अरे भाई उसमे वेल्थ वालों की क्या गलती वो तो बस अपना काम कर रहे हैं । आजकल हर जगह कॉमन वेल्थ की ही चर्चा है । मेरा एक रिश्तेदार भी इसका हिस्सा है और वो बड़ा प्रसन्न है क्योंकि उसे उपर से नीचे तक रीबोक के बस्त्रों से सजाया गया है ।

मेरा भी पाला कॉमन वेल्थ से होने वाली परेशानिओं से पड़ा है क्योंकि में बस का नियमित सवारी हूँ और कॉमन वेल्थ की वजह से मुझे भी या मेरे जैसे कई नियमित लोगों को परेशानी हुई है । मसलन कभी एक नया रूट बना देना कभी किसी नए रास्ते पे ले जाना । देर से ऑफिस पहुचों तो रोज नई बात बताने से ऑफिस वालों का भी शक होना की बालक रोज लेट होता है और कहानी भी नई बनाता है या तो ये बहुत क्रिएटिव है या बहुत ही बड़ा कहानीकार । पर सच तो ये है की सच वही जनता है जो बस का सफर करते हैं, हमारी पीड़ा वो क्या जाने जो खुद के वाहन या कार से आते हैं ।

वो तो जहाँ खड़े हो जाये वंही पर एफम ऑन और फोन पे लगे बतियाने । पर बस वाले क्या करे एक तो बस में भीड़ उस पर से खड़े खड़े सफर और अगर बस में आप अपने पैसे खर्च कर के भी बात करेंगे तो भी कई लोग टोक देते हैं की भाई साहब बस में तो अराम करने दिया करो फिर तो दिन भर फोन पर ही बात करना है । ये हैं बस के हालात । कुछ लड़किओं को मैंने देखा है उनके मुंह में साईंलेंसर लगा होता है कितना भी ध्यान लगा लीजिए मजाल की आप उनकी बात सुन सके ।

अब कल की ही बात है सुबह का समय था हर कोई भागने में, और बस पकड़ने में लगा हुआ था । मैं भी भीढ़ का एक हिस्सा था । बरसात का ये किस्सा था । जब से बस में फोन चोरी हुआ तब से ब्लूलाइन की सवारी से बचता हूँ, थोड़ा अराम से बस पकड़ता हूँ । एक सरकारी गाडी आई वो भी पूरी ठसाठस भरी हुई । किसी तरह उसकी बालकॉनी वाली सीट ( ड्राईवर के बगल वाली क्योंकि यही वो स्थान है जिसे पूरी बस दिखाई देती है तभी में इसे बालकॉनी वाली सीट बोलता हूँ ) पर जगह मिली । और मैं ड्राईवर साब से बाते करता हुआ सफर को अंजाम देने लगा । अभी बस अपनी रफ़्तार पर थी की अचानक किसी महिला के शोर की आवाज़ आई, आवाज़ का जब ठीक से अध्ययन किया तो पता चला की कोई नवयुवती होगी । उसके साथ उसका कोई पुरुष मित्र भी था । उसके बाद तो अगले १५ मिनट तक सिर्फ हो हल्ला ही होता रहा बात क्या थी पल्ले ही नहीं पड़ रही थी । हम भी ड्राईवर साब के साथ मगन थे । एक जनाब जब पीछे से आगे तो मैं बड़े प्रेम से पूछा क्या मैटर था, तो जनाब बोले भाईसाब बस में इतनी भीढ़ है  गलती से किसी ने एक नवयुवती को छू दिया होगा तो उस पर उनके पुरुष मित्र तो ताव आ गया । तो पूरा मुद्दा मेरे समझ में आ गया । वैसे भी आज कल रेडियो और टीवी में नया विज्ञापन बड़ा चल रहा है की वो प्यार ही क्या जो आपकी रक्षा ना कर सके गुनाहों का देवता । चलो कम से कम विज्ञापन का असर इतनी तेज़ी से होता है ये मैंने बहुत दिनों के बाद देखा था । मैं भी अपने स्टॉप से ऑफिस के लिए निकाल पड़ा ।   

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