मेरे ऑफिस से घर और घर से ऑफिस जाने की यात्रा की कहानियाँ और दैनिक जीवन के कुछ लम्हों के साथ दिल से निकलने वाले कुछ अनछुए पहलू जिन्हें लिख कर मुझे अच्छा लगता है. मुझे आशा है कि आपको पढ़ कर भी अच्छा लगेगा.
सुध-बुध खोई पर तू न गयी मेरे मन से कल की खुमारी अभी तक दिमाग में इस तरह बसी हुई है जैसे कोई खराब गंध बस जाती है । उस दिन रात को देर से नींद आई और चूँकि अगले दिन ऑफिस की चट्टी थी तो नींद भी जल्दी खुल गयी । क्या ऐसा मेरा ही साथ होता है या सबके साथ साथ होता है मैं इससे अभी तक अनजान हूँ । पर उस दिन एक अलग ही खुमारी थी । कभी कभी वों खुशबु मुझे अभी तक अंदर तक हिला देती है । पर अब किया भी क्या जा सकता है । बीती की बिसर कर आगे की सुध लेई । मैं भी कुछ इसी तरह की विचारधारा ले कर चल रहा था । कुछ इस तरह के विचारों में सन्डे बीत गया । और मनडे से वही घड़े की तरह काम करने वाला सप्ताह स्टार्ट हो गया हालाँकि में गधे की तरह तो काम नहीं करता पर और खुद को गधा कह कर पूरे गधे समाज से बैर भी लेना नहीं चाहता । मेरे पापा जिन्हें हम अर्थात सभी भाई बहिन और साथ में मम्मी दद्दू कह कर बुलाते है कहते थे की बोलने से पहले १०० बार सोचना चाहिए एक बार की चूक आपको भारी नुक्सान दे सकता है । इसीलिए ये गधा समाज उपर जो लिखा उसे मेरी भूल समझ कर भूल जाने का प्रयास करिये ये मैं सिर्फ लिखने मात्र ले लिए कर रहा हूँ । सोमवार को वही सुबह सुबह ऑफिस की भागदौड में एक सप्ताह और बीताने के लिए सुबह सुबह घर से निकल चुका था । स्टैंड पर आ कर देखा की आज का तो नज़ारा ही बदला हुआ है आज जाते वक्त स्टैंड पर इतनी भीड़ । फिर वही पुरानी बात याद आ गयी की आज तो सोमवार है । में एक निश्चित बस से ऑफिस जाता हूँ और अनिश्चित बस से वापस आता हूँ । कारण ये है की ऑफिस जाते वक्त उस निश्चित बस में सीट मिल जाती है और कुछ और निश्चित सवारियां बैठती है । बाकी सब सुविधानुसार होता है । उस बस के अधिकतर लोंगो का चेहरा पहचाना हुआ है अब अगर कोई नहीं आता है तो पता चल जाता है फलां सीट का सवारी आ गायब है । सबकी सीट लगभग निर्धारित है । मैं सबको अक्सर एक सीट पर बैठते देखता हूँ जिसके कारण मेरी भी एक सीट पक्की हो गयी है । सोमवार का पूरा दिन बड़े ही सुकून के साथ गुजरा अब शाम हो चुकी थी और ऑफिस से जाने का वक्त होने लगा । पर शायद मुझे आज भी किसी का इंतज़ार था । और मेरी नाक बार बार फडक रही थी । पर वो कहावत है न की ”बिल्ली के भाग्य से रोज रोज छीका नहीं टूटता” । इंतज़ार इंतज़ार ही रहा और मैं घर की तरफ रवाना हो गया । बस स्टैंड पर आज फिर पुराने लॉन्ग नज़र आने लगे थे । वही जाने पहचाने चेहरे मुझे स्टैंड पर नज़र आने लगे थे । बस आई और में बस चढ गया । टिकट ले कर एक कोने में खड़ा हो गया । आज मन कुछ उदास था पता नहीं क्यों । पर उसका एक फायदा मिला । आज सब कुछ अपने आप हो रहा था । ५ मिनट के अंदर ही सीट भी मिल गयी । बिना किसी मेंहनत के पर वो न दिखी जिससे देखना था । उस दिन तो नहीं पर आज लिखते वक्त वक्त एक लाइन याद आइ है किसने लिखा है ये तो याद नहीं पर हम पर लाइन बिलकुल सटीक बैठती है । “ तृषणा तू न गयी मेरे मन से” । इन्ही यांदों में खोता हुआ में अपनी सीट पर बैठा हुआ कुछ कुछ खोया हुआ अपने खयालो में सोता हुआ किसी की यादों को सहेजता हुआ बिना बात के हसता हुआ बस से उतर गया ।
दिन शनिवार समय ८ बजे और मैं अपने ऑफिस में । सोच रहा था की अब निकलु की तब निकलु । पता नहीं क्यों आज ऑफिस से जाने का मन नहीं कर रह है । मन कर रहा है की ऑफिस में कम से कम २ घंटे और रूक जाऊ और थोडा काम और कर लु । पर मेरे बॉस ने तभी मुझे जाने का हुक्म सुना दिया । कारण ये है की ऑफिस का माहौल आज थोडा थोडा गरम हो गया था । इसका मतलब ये नहीं ही ऑफिस में लाइट नहीं आ रही थी । दरसल मेरे ऑफिस में कोई बला ( बाला अर्थात महिला) नहीं है तो पूरे ऑफिस में दिनभर भर पूरी तरह वो सम्पूर्ण पुरूष वाला (मतलब आप समझ ही गए होंगे) माहौल रहता है । कोई कंही से भी उठता है और कंही भी गिर जाता है । किसी की भाषा पर अब कोई कण्ट्रोल नहीं है । जो मन में आये वो कहो । तो हर किसी को ये माहौल बड़ा पसंद आता है । और कोई चाहता भी नहीं की उसकी इस आजादी को कोई आ कर छीने । पर उस दिन कोई आ चुकी थी जो की दोपहर से हमारे ऑफिस में विदमान थी और बड़े ही हर्षोल्लास के साथ हमारे साथ बातें कर रही थी और हम लॉन्ग थोडा थोडा समय निकल कर अपना अपना काम कर करे थे । अब आप सोचेंगे की उस महिला या स्त्री में एषा क्या था तो जनाब आपको मैं बता दू की वो महिला हम पर सालों शासन करने वाले अंग्रेजो के देश इग्लैंड से आई हुई थी । और मैंने किसी विदेशी महिला से शायद पहली बार आमने सामने बैठ कर बात की हो । और वो भी हिंदी भाषा में । वो जब तक ऑफिस में रही ऑफिस का माहौल ही दूसरा था । सब कोई आराम आराम से बात कर रहा था । बड़े ही नजाकत से हम एक दूसरे के साथ पेश आ रहे थे हालाँकि हम और दिनों में ऑफिस में कोई लड़ाई नहीं करते पर उस दिन का महौल कुछ और था । यही कारण था की मेरा मन ऑफिस में थोड़ी देर और रुकने का था । पर मेरे बॉस के कारण ऐसा संभव नहीं हुआ । खैर अब में कर भी क्या सकता था “मरता क्या न करता” मैं भी घर जाने को तैयार हुआ और वो गुड नाइट का स्वरनाद अभी भी मेरे मस्तिष्क में गोल गोल घूम रहा है । और मैंने जो कहा वो पता नहीं उसको याद था भी या नहीं । पर वो कहते है न “कि सावन के अंधे को सब हरा ही हरा दिखाई देता है” मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ । ऑफिस से निकलते वक्त सब कुछ बड़ा अच्छा वाला फील हो रहा था । मुझे उस दिन किसी बात कि उतनी चिंता नहीं थी । बार बार ऑफिस कि दुर्घटनाये फ्लेशबेक हो रही थी । और कई गाने मुझे स्वतः ही याद आ रहे थे । इसका कारन क्या था मुझे अभी तक पता नहीं चला । आज घर जाना सबसे बड़ा काम लग रहा था । और घरवालों पे गुस्सा कि घर को ऑफिस से इतना दूर क्यों बनाया । पर में ये बात लिखने के अलावा कुछ कर भी नहीं सकता था । क्योंकि उस दिन तो मन मेरा डोलिंग डोलिंग कर रहा था । वैसे किसी शायर ने ठीक ही कहा होगा जब किसी से पहली बार मिला होगा । आज स्टैंड पर किसी को देखने का मन नहीं था । और उस दिन बस भी जाते ही आ गयी । बस में सवारी उतनी नहीं थी जितनी होती थी आम दिनों । मैंने एक कोने में अपनी जगह बना ली । और ख्यालों में खोने लगा । उस दिन का मर्म और उस पर गर्म दोनों ही अपना कमाल दिखा रही थी । पता नहीं किस किस तरह मनमोहक खुशबु मेरे नाकों में आ आ कर जा रही थी । और मुझे पुनः ख्यालों में खोने को मजबूर कर रही थी । उस दिन बस में कौन क्या क्या कर रहा था मैंने कुछ भी नोट नहीं किया बस अपने में ही खोट नज़र आ रहा था । कि अचानक देखा मेरे सामने सीट खाली हुई और मैंने बिना चुके चौका मर दिया और अपने सभी साजो-सामान के साथ उस पर विराजमान हो गया और पुनः ख्यालों में खो गया । गनीमत ये रही कि मेरे स्टैंड आने से पहले मेरे एक मित्र का फोन आ गया वरना पता नहीं मैं अपने स्टैंड उतरता या दूसरे के ।
बस में चोरी और आदमी का साहस मैं आज कल अपने अपने पुराने ढर्रे पर आ गया हूँ । रोज ऑफिस से लेट घर जाना एक तरह की आदत हो गयी है । और अगर थोडा पहले जाता हू तो थोडा सा अच्छा भी नहीं लगता है । और इसके पीछे एक कारण और भी है वो है बस का ना मिलना । तो ऑफिस में ही मीटर डाउन किये रहता हूँ । इससे दो फायदे होते है एक तो लोगो को लगता है की मैं वर्कअल्कोहलिक हूँ और दूसरा ऑफिस से उस टाइम निकलता हूँ की बाहर जाऊ और स्टैंड पर खड़ा हूँ और बस के अंदर । ये तो वही हुआ एक तीर से दो शिकार । कल भी कुछ ऐसा ही किया और बड़ा अच्छा भी लगा । मेरे सीनियर ने मजाक मजाक में कह भी दिया की बेटा ज्यादा काम न किया कर लोंगो पर दुष्प्रभाव भी पड़ता है । ये बड़ी ही छूत की बीमारी है और ऑफिस में बड़ी जल्दी फैलती है । ये रेडीयेशन से भी तेज असर करती है । मैंने सोचा की ये बात बता रहे है या डरा रहे है पर जो भी हो मुझे लगा सिखा सहे है । तो मैंने रेंचो जी की भाँती उस ज्ञान को भी अर्जित करने की कोशिश की और सफल भी हो ही गया । खैर बस में आज कुछ ज्यादा भीढ़ नहीं लगी । मुझे कारण तो बताना है कारण ये है की एक बस जा चुकी है । और भीढ़ के कारण मैं चढ नहीं पाया । और बाकी लोंगो तो चढ गए और बस स्टैंड अपने आप खाली हो गए । तो मैंने भी दूसरे बस का इंतज़ार करने लगा पर इंतज़ार इंतज़ार नहीं कर पाया और एक के जाते ही दूसरी बस आ गयी । मैं बड़ी ही शराफत के साथ बस में चढा । पर आज होनी को कुछ और लिखा । किसी ने बस में किसी का पर्स मार लिया अब तो वो दहाड़ मार मार कर रोने लगा । रोना स्वाभाविक था क्योंकि शायद उसमे उसके काफी रूपय थे और अगर आपकी जेब मैं कभी भुले भटके 5 का नोट भी मिल जाये तो 500 के नोट के बराबर खुशी देता है उसी तरह कभी 5 रूप गिर जाये तो वो 500 की याद दिला देता है । और उस बेचारे को तो लगभग 1000 का नुक्सान हुआ था पर उसने हिम्मत नहीं हारी । उसे एक नहीं 2 लोंगो पर शक हुआ था उसने तुरंत 100 नंबर पर फोन किया और 5 मिनट में बस के सामने 2 हट्टे कट्टे पुलिस के जवान मोटरसाइकिल लिए खड़े थे । अब तो एक साथ चेक्किंग का दौर शुरू हुआ तो लगभग १ घंटे बाद जा कर एक अच्छा सा दिखने वाला आदमी पकड़ा गया । साथ में उसका पर्से भी मिल गया । उस आदमी के चेहरे पर बड़ा संतोष था और दूसरों के चेहरों पर असंतोष क्योंकि उस अमनी की वजह से उनको १ घंटे की देर हो गयी । सब यही सोच रह थे की अब तक घर पहूँच जाता या अभी टीवी पर आईपीएल मैच देख रहा होता । सच कहू तो एक दो बार मेरे मन मैं भी ये ख्याल आया । पर जब उस आदमी की बदहवास हालत देखता तो वो ख्याल मन में ही खा जाता । उसके बाद जो बस चली फिर तो बस में एक ही बात थी पर्से और वो आदमी । अब हर कोई यही कह रहा था को बड़ा अच्छा काम किया तुमने ऐसा ही करना चाहिए । इत्यादि इत्यादि और वो आदमी अभी भी अपने आंसु पोछ रहा था तो कभी अपना पर्सेदेख रहा था । पर उसके चेहरे पर जो संतोष था वो सबसे तेज था ।