सुध-बुध खोई पर तू न गयी मेरे मन से

अप्रैल 13, 2010

सुध-बुध खोई पर तू न गयी मेरे मन से

कल की खुमारी अभी तक दिमाग में इस तरह बसी हुई है जैसे कोई खराब गंध बस जाती है । उस दिन रात को देर से नींद आई और चूँकि अगले दिन ऑफिस की चट्टी थी तो नींद भी जल्दी खुल गयी । क्या ऐसा मेरा ही साथ होता है या सबके साथ साथ होता है मैं इससे अभी तक अनजान हूँ । पर उस दिन एक अलग ही खुमारी थी । कभी कभी वों खुशबु मुझे अभी तक अंदर तक हिला देती है । पर अब किया भी क्या जा सकता है । बीती की बिसर कर आगे की सुध लेई । मैं भी कुछ इसी तरह की विचारधारा ले कर चल रहा था । कुछ इस तरह के विचारों में सन्डे बीत गया । और मनडे से वही घड़े की तरह काम करने वाला सप्ताह स्टार्ट हो गया हालाँकि में गधे की तरह तो काम नहीं करता पर और खुद को गधा कह कर पूरे गधे समाज से बैर भी लेना नहीं चाहता । मेरे पापा जिन्हें हम अर्थात सभी भाई बहिन और साथ में मम्मी दद्दू कह कर बुलाते है कहते थे की बोलने से पहले १०० बार सोचना चाहिए एक बार की चूक आपको भारी नुक्सान दे सकता है । इसीलिए ये गधा समाज उपर जो लिखा उसे मेरी भूल समझ कर भूल जाने का प्रयास करिये ये मैं सिर्फ लिखने मात्र ले लिए कर रहा हूँ । सोमवार को वही सुबह सुबह ऑफिस की भागदौड में एक सप्ताह और बीताने के लिए सुबह सुबह घर से निकल चुका था । स्टैंड पर आ कर देखा की आज का तो नज़ारा ही बदला हुआ है आज जाते वक्त स्टैंड पर इतनी भीड़ । फिर वही पुरानी बात याद आ गयी की आज तो सोमवार है । में एक निश्चित बस से ऑफिस जाता हूँ और अनिश्चित बस से वापस आता हूँ । कारण ये है की ऑफिस जाते वक्त उस निश्चित बस में सीट मिल जाती है और कुछ और निश्चित सवारियां बैठती है । बाकी सब सुविधानुसार होता है । उस बस के अधिकतर लोंगो का चेहरा पहचाना हुआ है अब अगर कोई नहीं आता है तो पता चल जाता है फलां सीट का सवारी आ गायब है । सबकी सीट लगभग निर्धारित है । मैं सबको अक्सर एक सीट पर बैठते देखता हूँ जिसके कारण मेरी भी एक सीट पक्की हो गयी है । सोमवार का पूरा दिन बड़े ही सुकून के साथ गुजरा अब शाम हो चुकी थी और ऑफिस से जाने का वक्त होने लगा । पर शायद मुझे आज भी किसी का इंतज़ार था । और मेरी नाक बार बार फडक रही थी । पर वो कहावत है न की बिल्ली के भाग्य  से रोज रोज छीका नहीं टूटता । इंतज़ार इंतज़ार ही रहा और मैं घर की तरफ रवाना हो गया । बस स्टैंड पर आज फिर पुराने लॉन्ग नज़र आने लगे थे । वही जाने पहचाने  चेहरे मुझे स्टैंड पर नज़र आने लगे थे । बस आई और में बस चढ गया । टिकट ले कर एक कोने में खड़ा हो गया । आज मन कुछ उदास था पता नहीं क्यों । पर उसका एक फायदा मिला । आज सब कुछ अपने आप हो रहा था । ५ मिनट के अंदर ही सीट भी मिल गयी । बिना किसी मेंहनत के पर वो न दिखी जिससे देखना था । उस दिन तो नहीं पर आज लिखते वक्त वक्त एक लाइन याद आइ है किसने लिखा है ये तो याद नहीं पर हम पर लाइन बिलकुल सटीक बैठती है । तृषणा तू न गयी मेरे मन से । इन्ही यांदों में खोता हुआ में अपनी सीट पर बैठा हुआ कुछ कुछ खोया हुआ अपने खयालो में सोता हुआ किसी की यादों को सहेजता हुआ बिना बात के हसता हुआ बस से उतर गया ।  

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6 टिप्पणियाँ

  1. Very interesting...hota hai... hota hai...jeevan mein barhaan aisa hua hai...ki mann udaas hota hai kyunki khush hone ki koi wajah milti hi nhai...phir aise mein bas yeh yaad karti hun..ki main kaun hoon..kahan hoon aur kaisi hoon...phir lagta hai ki -- "I'll never be young again"

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  2. kon thi wo, uske bare me bhi kuch likhna tha, atleast uski beauty ke bare me, bas aapni aur uski yaado ko hi sajate rahe aap

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