बस में चोरी और सब के सब शांत
अप्रैल 17, 2010
बस में चोरी और सब के सब शांत
कल ऑफिस से जाते वक्त एक बड़ी अच्छी घटना घटी । उससे पहले बता दू की ऑफिस का दिन बड़ा अच्छा था । कुछ खास हुआ नहीं ऑफिस में । घर जाने का वही पुराना समय चुना और बस की भीढ़ में शामिल हो गया । आज स्टैंड कुछ कुछ मज़ेदार नहीं था । भीढ़ उतनी नहीं थी । और न ही वो खैनी वाले भैया दिखाई दिए । हो सकता है वो आज पहले चले गए हो । मैं बस का इंतज़ार करने लगा । थोड़ी देर में बस भी आ गयी । बस पहले से भरी थी स्टैंड पर आकर वो और भी भर गयी । चड़ने में थोड़ी में थोड़ी म्हणत लगी पर आखिरकार स्टैंड का एक एक आदमी बस में चढ गया । चलो टिकेट ले कर एक सुविधाजनक स्थान देखने की तैयारी करने लगा । वो मिल भी गई । कुछ देर तो बस में कुछ नहीं हुआ । तो में सोचने लगा की क्या कल का ब्लॉग खली रहेगा । मैंने सोचा की अभी तो बस में चढा हू अभी तो पुरे १ से ज्यादा घंटे का सफर है कुछ न कुछ तो होगा ही । मैं यही सोच कर अंदर बाहर देखने लगा । पता नहीं ऐसा मुझे ही लगता है या कुछ और भी है की जब में बस में होता हू तो बाहर अच्छे अच्छे लोंगो को देखता हूँ । जब बाहर होता हू तो बस में अच्छे लोंगों को देखता हूँ । कार में होता हू तो ऑटो में अच्छे लोंगो को देखता हूँ ऑटो में होता हूँ तो कार में तो हमेशा ही अच्छे लोंगो को देखता हूँ । मैं इससे अनजान हू की मेरे साथ ही ऐसा होता है या कोई और भी इसका भुक्त भोगी है । बस इसी उधेड़बुन में बस का सफर चल रहा था । पता ही नहीं चला कब समय का पहिया घूमता गया और मैं अपने घर के पास पहुच गया । पर होनी को मेरे ब्लॉग पर कुछ तो लिखवाना था उसके लिए में ब्लोगमाता का धन्यवाद देना चाहूँगा जिन्गोने अचानक आ कर कुछ ऐसा करवा दिया की पूछो मत । हुआ ये की सन्नाटे को चीरती हुई एक चीख निकली । चीक सुन के लगा किसी का क़त्ल हो गया । पर सनसनी फुनफनी हो गयी । किसी ने किसी की जेब में हाथ मारने की कोशिश की थी और एक महिला ने उसका सजीव प्रदर्शन देख कर चीख निकाल दि थी । उस घटना में चीख ही सबसे अच्छी थी । बाकि सब बेकार क्योंकि जिसकी जेब पर हाथ मारा गया वो कुछ नहीं कर पाया । वो महिला बार बार इशारा कर रही थी की ये चोर है इसने हाथ मारा था पर निरह भीढ़ वही कौन कौन करती रही । बस के दोनों गेट बाद थे । पर फिर भी कोई सीधे हाथ नहीं मार रहा था सब सिर्फ कौन कौन कर रहा था । कोई भी उस चोर को सीधे हाथ नहीं पकड़ रहा था । हालाँकि वो चोर अपना काम पूरा नहीं कर पाया था इस लिए जिसके साथ ऐसा हुआ उसका सब कुछ सुरक्षित था । तो उसको कोई चिंता नहीं थी वो भरी हुई बस में धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था । जबकि सबसे ज्यादा उसको चिंता और सजग रहना था । उसको इन सबसे कोई मतलब नहीं था वो तो बस अपनी दुनिया में मग्न था । लग्बह्र ये सिलसिला ५-६ मिनट चला होगा । पर हुआ वही ढाक के तीन पात । उसके बाद जो स्टैंड आया उसमे वो चोर बड़ी ही शांति के साथ नीचे उतर गया । सब देखते रह गए । मुझे कल के दिन और उस दिन में कुछ ज्यादा अंतर नहीं लगा क्योंकि उस दिन भी एक ही आदमी ने आवाज़ उठाई आज भी एक ने ही आवाज़ उठाई । उस दिन जिसके साथ हुआ वो ज्यादा चौकस था आज जिसने देखा वो ज्यादा चौकस था । बाक़ी सब शांत थे । और उसके उतर जाने के बाद वही तमाम बातें । की ये लोग झुण्ड में शिकार करते है जैसे ये भेडिये के वंशज हो । अरे वो चोर हैं एक आवाज़ उठेगी वो सब के सब अलग अलग हो जायेंगे । ये बात हम कब समझेंगे ।
कल ऑफिस से जाते वक्त एक बड़ी अच्छी घटना घटी । उससे पहले बता दू की ऑफिस का दिन बड़ा अच्छा था । कुछ खास हुआ नहीं ऑफिस में । घर जाने का वही पुराना समय चुना और बस की भीढ़ में शामिल हो गया । आज स्टैंड कुछ कुछ मज़ेदार नहीं था । भीढ़ उतनी नहीं थी । और न ही वो खैनी वाले भैया दिखाई दिए । हो सकता है वो आज पहले चले गए हो । मैं बस का इंतज़ार करने लगा । थोड़ी देर में बस भी आ गयी । बस पहले से भरी थी स्टैंड पर आकर वो और भी भर गयी । चड़ने में थोड़ी में थोड़ी म्हणत लगी पर आखिरकार स्टैंड का एक एक आदमी बस में चढ गया । चलो टिकेट ले कर एक सुविधाजनक स्थान देखने की तैयारी करने लगा । वो मिल भी गई । कुछ देर तो बस में कुछ नहीं हुआ । तो में सोचने लगा की क्या कल का ब्लॉग खली रहेगा । मैंने सोचा की अभी तो बस में चढा हू अभी तो पुरे १ से ज्यादा घंटे का सफर है कुछ न कुछ तो होगा ही । मैं यही सोच कर अंदर बाहर देखने लगा । पता नहीं ऐसा मुझे ही लगता है या कुछ और भी है की जब में बस में होता हू तो बाहर अच्छे अच्छे लोंगो को देखता हूँ । जब बाहर होता हू तो बस में अच्छे लोंगों को देखता हूँ । कार में होता हू तो ऑटो में अच्छे लोंगो को देखता हूँ ऑटो में होता हूँ तो कार में तो हमेशा ही अच्छे लोंगो को देखता हूँ । मैं इससे अनजान हू की मेरे साथ ही ऐसा होता है या कोई और भी इसका भुक्त भोगी है । बस इसी उधेड़बुन में बस का सफर चल रहा था । पता ही नहीं चला कब समय का पहिया घूमता गया और मैं अपने घर के पास पहुच गया । पर होनी को मेरे ब्लॉग पर कुछ तो लिखवाना था उसके लिए में ब्लोगमाता का धन्यवाद देना चाहूँगा जिन्गोने अचानक आ कर कुछ ऐसा करवा दिया की पूछो मत । हुआ ये की सन्नाटे को चीरती हुई एक चीख निकली । चीक सुन के लगा किसी का क़त्ल हो गया । पर सनसनी फुनफनी हो गयी । किसी ने किसी की जेब में हाथ मारने की कोशिश की थी और एक महिला ने उसका सजीव प्रदर्शन देख कर चीख निकाल दि थी । उस घटना में चीख ही सबसे अच्छी थी । बाकि सब बेकार क्योंकि जिसकी जेब पर हाथ मारा गया वो कुछ नहीं कर पाया । वो महिला बार बार इशारा कर रही थी की ये चोर है इसने हाथ मारा था पर निरह भीढ़ वही कौन कौन करती रही । बस के दोनों गेट बाद थे । पर फिर भी कोई सीधे हाथ नहीं मार रहा था सब सिर्फ कौन कौन कर रहा था । कोई भी उस चोर को सीधे हाथ नहीं पकड़ रहा था । हालाँकि वो चोर अपना काम पूरा नहीं कर पाया था इस लिए जिसके साथ ऐसा हुआ उसका सब कुछ सुरक्षित था । तो उसको कोई चिंता नहीं थी वो भरी हुई बस में धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था । जबकि सबसे ज्यादा उसको चिंता और सजग रहना था । उसको इन सबसे कोई मतलब नहीं था वो तो बस अपनी दुनिया में मग्न था । लग्बह्र ये सिलसिला ५-६ मिनट चला होगा । पर हुआ वही ढाक के तीन पात । उसके बाद जो स्टैंड आया उसमे वो चोर बड़ी ही शांति के साथ नीचे उतर गया । सब देखते रह गए । मुझे कल के दिन और उस दिन में कुछ ज्यादा अंतर नहीं लगा क्योंकि उस दिन भी एक ही आदमी ने आवाज़ उठाई आज भी एक ने ही आवाज़ उठाई । उस दिन जिसके साथ हुआ वो ज्यादा चौकस था आज जिसने देखा वो ज्यादा चौकस था । बाक़ी सब शांत थे । और उसके उतर जाने के बाद वही तमाम बातें । की ये लोग झुण्ड में शिकार करते है जैसे ये भेडिये के वंशज हो । अरे वो चोर हैं एक आवाज़ उठेगी वो सब के सब अलग अलग हो जायेंगे । ये बात हम कब समझेंगे ।
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