बस में ठूसी हुई सवारी और कान में हेडफोन

अप्रैल 28, 2010

बस में ठूसी हुई सवारी और कान में हेडफोन

आजकल ऑफिस में बड़े ही अजीब तरह का माहौल है । पता ही चलता कि टाइम पंख लगा कर उड़ जाता है । पता ही नहीं  चलता  कि आने के बाद समय कैसे पास हो गया । और जब ऑफिस से जाने का समय होता है तब पता चलता है अरे अब तो जाने का टाइम हो गया अभी तक तो ब्लॉग का ब भी नहीं लिखा । फिर लग जाता हूँ  जुगाड में मे कि कैसे टाइम निकल कर ब्लॉग को मूर्त रूप दू  । वैसे भी कल ऑफिस अपने समय से थोडा पहले निकला मन में वो चमकता सूरज रात में भी चमक रहा था । और निगाहे रात में भी सूरज को ढूंढ रही थी । पर आज तक  नोर्वे को छोड़ कर रात में कंही कभी सूरज नहीं निकलता ये बात में भूल गया था । में अपनी रफ़्तार में चल रह रहा था । कि स्टैंड तक आराम से जाऊंगा पर मेरे कदमो के साथ यातायात भी रुका हुआ था और इतना कि पैदल चलने लायक भी जगह नहीं बची थी  । पर पैदल चलने वालों को आजतक कोई रोक पाया है जो आज रोक पायेगा । मैं भी दाये बाये करते हुए कार पर चढ़ते हुए अपने रास्ता बना ही लिया और न जाने कितनो ने मेरा अनुसरण किया और मैंने किसी और का किया था । उस समय कार वाले भी कुछ नहीं बोले उन्होंने ऐसा क्यों किया ये मुझे नहीं पता । आज बस स्टैंड कि लाइट खराब थी तो अँधेरा अँधेरा हुआ था । किसी का चेहरा पहचान नहीं पा रहा था और मेरी निगाहें उस खैनी वाले भैया को ढूढ़ रही थी क्योंकि लगभग एक हफ्ते से उनको नहीं देखा था । तो मन में देखने कि एक अजीब सी ईच्छा हो रही थी । आज बस ने कम से कम २० मिनट तक रुला दिया । मेरी वाली छोड बाकी सब आने का नाम ले रही थी और आ कर कर जा रही थी । और उस अँधेरे में हम जैसे मुसाफिर का ध्यान नहीं दे रही थी । उसके बाद बस का आगमन हुआ तो एक साथ झुण्ड के झुण्ड चढ़ने लगे तो बस कि खिडकी से एक सज्जन ने आवाज़ दि कि अरे पीछे २ बस और भी आ रही है । पर उनकी ये आवाज़ सड़क कि आवाज़ में दब कर रह गयी और एक यात्री बस के गेट में । किसी तरह उनको उससे निकला गया तो बस में जान आई और बस ने आगे का गीयर दबाया गया । आगे तो मत पूछो आज बस में अपने आप ठूस ठूस के सवारी अपने आप चड गयी थी । और बस वाले ने बस को सिर्फ उतरने वालों के लिए ही खोलने का निर्णय लिया । ये भी एक तरह का हाहाकार था । उनके लिए जो बस के बहार थे और बड़ी देर से बस का इंतज़ार कर रह थे । तो बस जहाँ रूकती वो आगे या पीछे कंही से भी चड़ने के लिए बेताब हो जाते और मैंने देखा कि एक दो को इसी कारण चोट भी लगी और वो गाड़ी वाले पर गुस्सा भी हो गए । पर इन सब से एक व्यक्ति अनजान था । उसको किसी भी दुनिया कि खबर नहीं थी क्योंकि वो अपने कान में हेडफोन लगा कर मस्ती में आँखें बंद कर के गाना सुनने में लगा हुआ था । उसको ये भी होश नहीं था कि आसपास क्या हो रहा है । और तो और वो गाना सुनने के साथ साथ गाना गाये भी जा रह आता । कभी गाना इंग्लिश का होता तो कभी हिंदी । और सुर माशा अल्लाह वो भी बड़े चुन चुन के निकल रहे थे । और जब किसी के कानो में हेडफोन लगा होता है तो उसके सुर अपने आप तेज हो जाते है जैसे उन जनाब के थे । उनको इसका भी पता नहीं चला कि कब धूल वाली आंधी ने बस पर हमला किया और निकल गयी । मैंने भी स्टैंड आने पर उतरने का फैसला कर ही लिया ।

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