गुड फ़्राइडे और बस अपने दादा की

अप्रैल 03, 2010

ओए कल फ़्राइडे था मेरा मतबल गुड फ़्राइडे से है तो कल ज्यादा काम नहीं था न आने मैं  कोई दिक्कत हुई और न जाने में ।  ये सुबह जब घर से निकला तो पता चल गया की आज छुट्टी का दिन है । पर मेरी नहीं है इसका कोफ़्त सबसे ज्यादा होता है जब घर मैं सबकी छुट्टी हो और किसी एक को जाना पड़े तो अपने स्कूल दिनों की याद आ जाती है जब हम सब भाई बहन स्कूल जाते थे और जब कोई एक नहीं जाता था तो बड़ा खराब लगता था और दिन भर एक ही ख्याल आता था की भैया या दीदी घर में अभी क्या कर रही होंगी या होंगे । घर वापस आने पर सबसे पहला सवाल यही होता था की आज क्या क्या किया कार्टून देखा या मैच खेला । तब घरवालों पर गुस्सा आता था की हमें ही क्यों या हमें भी भैया वाले स्कूल मैं क्यों नहीं पढाया । कम से कम छुट्टी तो मिलती । और आज कल लगता है कैसा ऑफिस मिला है जन्हा गुड फ़्राइडे को भी छुट्टी नहीं मिलती । चलो कोई नहीं शास्त्रों में कहा है मनुष्य कभी संतोषी नहीं हो सकता अगर वो संतोषी हुआ तो वह मनुष्य नहीं है तो क्या है ये आप खुद ही निर्णय करे । सुबह सुबह  में क्यों अपना मुँह खराब करू ......राम राम । कल सुबह आते वक्त लगा की बस मेरे दादा की है जन्हा चाहो बैठो जन्हा चाहो घुमो । जो सफर 1 घंटे मैं होता था वो मात्र ३५ मिनट मैं हो गया । कल सबके पास टाइम था मेरे पास और सबके पास भी । ऑफिस भी ठीक थाक ही रहा कुछ खास काम नहीं था । जाते वक्त भी मुझे लग गया  था की आज फिर शाम में बस फिर मेरे दादा की होने वाली है । काश में आज फिर कार मांग लेता उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ । कोई नहीं फिर कभी मांग लूँगा । स्टैंड पर आज फिर कोई पुराना चेहरा नहीं था सब नए थे क्योंकि कल  गुड फ़्राइडे था । बस आने पर कल उतना उत्साह नहीं था जितना और दिन होता था की सीट पाने में कितना दिमाग लगाना पड़ता है । कल तो दादा की संपत्ति थी कंही भी बैठो । मैं इस बात से हैरान था की कल लिखूंगा क्या पर वो कहते है जन्हा चाह वंहा राह । एक सज्जन अपने परिवार के साथ गलत बस मतलब हमारे वाले मैं चढ गए । जैसे ही उन्होंने टिकट के लिए जगह बताई सबके चेहरे पर एक खुशी की किरण चमक उठी । क्योंकि सब कोई किसी से बात करने का बहाना ढूंढ रह थे । फिर क्या था एक के बाद एक उनको एक्सपर्ट राय मिलने लगी । कोई ऑटो के लिए कहता कोई मेट्रो के लिए तो कोई उनको बस का ही रूट समझाता अब आप समझ ही गए होंगे बस का रूट किसने समझाया होगा। मैंने भी सोचा बहती गंगा में हाथ धो लेने चाहिए मैंने भी एक महान एक्सपर्ट होने का सबूत दिया और सरे रूट साथ बता दिए साथ मैं फायदे और नुक्सान भी । अब तक तो मेरे ख्याल में वो किसकी बात मानते ये सबसे बड़ा पंगा था उनके लिए । वो सब एक दूसरे का मुह देख रहे थे । अब उन्होंने कौन सा फैसला लिया ये उनको ही पता था बस हमको इतना पता चला की उन्होंने दूसरे नंबर का टिकट लिया और वो भी अपनी दादा की सम्पति पर हक ज़माने बैठ गए । वैसे कल का सफर एक तरह का सुख ही था । बड़ा ही अच्छा लग रह आता कल के सफर मैं ना कोई भीढ़ न कोई शोर न कोई मचमचखचखच अरे लो मुझे पता ही नहीं चल कब मेरा स्टैंड आ गया ।   


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