बड़े दिनों के बाद एक बार फिर ब्लॉगर के साथ

जून 25, 2010

बड़े दिनों के बाद एक बार फिर ब्लॉगर के साथ

आज एक बार फिर इतने दिनों के बाद आपके सामने कुछ लिखे का मन हुआ है । पिछले लगभग एक महीने से कुछ ज्यादा ही व्यस्त था जिसके कारण में ब्लॉग में एक भी एंट्री नहीं लिख सका । इसके पीछे कुछ कारण थे । कुछ तो अपने काम में व्यस्त होना अर्थात ऑफिस में थोडा अधिक काम था । और जब उससे कुछ फ्री हुआ तो मेरे पिता श्री जिन्हें सभी जानने वाले चाहे वो छोटे हो या बड़े दददू कहते थे उनका अचानक देहांत हो गया जिसने मुझे पूरी तरह से पंगु बना दिया । आज बहुत दिनों बाद कुछ लिखे बैठा हू । पर ये समझ नहीं आ रहा है क्या लिखू । यात्रा का विवरण लिखू या क्या । जब दददू के बारे में पता चला तो पूरा का पूरा स्तब्ध रह गया । खैर मृत्यु एक ध्रुव सत्य है  जिसे में क्या बाबा राम देव भी नहीं टाल सकते । उसके बाद पुनः दिल्ली आने के बाद फिर काम में ऐसा रमा की लिखें की आशा आस लगाये बैठी थी की कब में आस से उठ कर बैठू और लिखना शुरू करू ।

आपको बाता दू इतने दिनों से ना लिखने के कारण बहुत सी कहानिया मेरे दिमाग के समुन्द्र में गोते लगा रही  है पर उनको मैं चुन नहीं पा रहा हूँ । यही सोच कर अब में ओक्सीजन लगा कर उस गहरे समुन्द्र में उतरने की तयारी कर चुका हूँ और ये सोच कर बैठा हू की आज समुन्द्र से कोई भी मछली ना पकडूँगा बल्कि सिर्फ उन्हें चारा दे कर आ जाऊंगा ताकि कल से वो रोज मेरे लिए किनारे पर आये और मुझे नित नयी बात याद आये ।

इतने दिनों में क्या क्या नहीं बदला किसी देश का प्रधानमंत्री , वर्ल्ड कप के महारथी , भारत का क्रिकेट इतिहास तो फिर मेरी बस क्यों ना बदलती । मैंने भी अपनी बस बदल ली थी । अब मैं नए रूट और नए बस की सवारिओं के साथ आता हूँ । कहते है परिवर्तन जीवन के लिए अच्छा होता है।

मेरे साथ भी कुछ कुछ अच्छा रहा । बस का माहौल अच्छा था । ऑफिस पहुचने में पुरे २५ मिनट की बचत होती थी । जिसके कारण अब में आराम से ३० मिनट ज्यादा सोता था । मेरी भाभी को ३० जायदा सोने की भी आजादी मिल गयी । अलबत्ता मेरे भतीजे जनाब अब वक्त से १ घंटे पहले सो कर उठ जाते है । जिसका नुक्सान मुझ जैसे गरीब को उठाना पड़ता है । पर उसके साथ थोड़ी देर खेल कर उस १ घंटे के नुकसान से बाबा रामदेव की कसरत के समान उर्जा शरीर आती हुई लगती है । सरे अंग भलीभांति चलते हुए लगते है । वैसे बस में रोज ना रोज कुछ ना कुछ ऐसा वैसा अजीबो गरीब द्रश्य परिद्रश्य नज़र वजर आ ही जाते है । जिनका मैं कल से जिक्र करना शुरू कर दूँगा । पर इतना तो जरूर है की पुराने रूट और नए रूट में बहुत अन्तर है । पुँराने रूट में जन्हा नित नए स्ट्रैंड पर कुछ ना कुछ होता रहता था यंह पर स्टैंड नियत है जिन पर घटनाये भी नियत है । पर जो जो होता है वो भी कम रोमांच पैदा नहीं करता । 

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