­
दरीचे

रंग

रंग वो कहते हैं मैं बदनाम हो गया हूँ, उनकी गली में आम हो गया हूँ. मेरा आना भी उन्हें नागवार गुजरता है, उनके दरीचे का पर्दा भी नया लगता है. छत के फूल भी अब मुरझाने लगे हैं, सीढ़ियों पर भी अब जाले लगने लगे हैं. बदल दिया है समय आने जाने का, नज़र मिलने पर भी रंग अब बदलने लगे हैं....

Continue Reading

उफ्फ

यादों का घरोंदा

यादों का घरोंदा   ना नज़रे मिलाते है न झुकाते हैं, देख कर उन्हें बस देखते जाते हैं । ना बोल पाते है न चुप हो पाते हैं, देख कर उन्हें बस गुनगुनाये जाते हैं ।   ना कुछ लिख पाते हैं न कुछ मिटा पाते हैं, देख कर उन्हें बस लकीरें खींच पाते हैं ।   ना चल पाते हैं न बैठ...

Continue Reading

नागवार

चंद अल्फाज़ तेरे लिये

कुछ पंक्तियाँ बस के यात्रा के दौरान मन में हिलोरे ले रही थी। सोचा लिख लू आज आपके सामने प्रस्तुत है आशा करता हूँ आपको अच्छी लगेगी। इसको लिखे के पीछे कोई निजी अनुभव नहीं पर हाँ देखे हुए जरूर है ।   वो कहते हैं बदनाम हो गया हूँ उनकी गली में आम हो गया हूँ। मेरा आना अब उन्हें नागवार गुजरता है उनके...

Continue Reading

Subscribe