चंद अल्फाज़ तेरे लिये
नवंबर 27, 2010
कुछ पंक्तियाँ बस के यात्रा के दौरान मन में हिलोरे ले रही थी। सोचा लिख लू आज आपके सामने प्रस्तुत है आशा करता हूँ आपको अच्छी लगेगी। इसको लिखे के पीछे कोई निजी अनुभव नहीं पर हाँ देखे हुए जरूर है ।
वो कहते हैं बदनाम हो गया हूँ
उनकी गली में आम हो गया हूँ।
मेरा आना अब उन्हें नागवार गुजरता है
उनके रोशनदान का पर्दा नया लगता है।
छत के फूल भी मुरझाने लगे हैं
सीढ़ियों पर जाले लगने लगे हैं।
देख कर हमें रंग बदलने लगे हैं
हम भी अब उन्हें भूलने लगे हैं।
© Csahab
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