मेरे ऑफिस से घर और घर से ऑफिस जाने की यात्रा की कहानियाँ और दैनिक जीवन के कुछ लम्हों के साथ दिल से निकलने वाले कुछ अनछुए पहलू जिन्हें लिख कर मुझे अच्छा लगता है. मुझे आशा है कि आपको पढ़ कर भी अच्छा लगेगा.
बस का नहीं ऑटो वाले भैया को धन्यवाद एक बार पुनः आप सभी सेक्षमा चाहूँगा कि मैं पुरे ३ दिनोंके बाद ब्लॉग पर आया हूँ । इसके पीछे मेरी ही कुछकहानी है जिसे में बयां नहींकर सकता हूँ । पर सच मानिये लिखते वक्त बड़ा सुकून मिलता है । आज में सबसे पहले उस ऑटो वाले भैया को धन्यवाद देना चाहूँगा जिसने मेरी जान बचायी । अगर वो सहीसमय पर ब्रेक पर पैर नहीं रखता तो आज में कंप्यूटर पर ऊँगली नहीं रखता । तो धन्यवाद अनजान ऑटो वाले भैया । हुआ ये था कि सोमवार का दिन था धूप अपने चरम पर थी पता नहीं मुझे क्या हुआ मैं १० मिनट के लिए ऑफिस के बाहर चला आया और धूप का आनंद लेने लगा मतलब अपने काम से ऑफिस के पास वाले मार्केट में जाने लगा । काम करके जब में मार्केट से वापस आने लगा तो एक गोल चक्कर पड़ता है रास्ता उतना चला नहीं है जितना चलना चाहिए मैंने देखा रोड के दूसरी तरफ एक बड़ी ही सुंदर सी विदेशी महिला ऑटो का इंतज़ार कर रही है । सच मानिये मेरी रफ़्तार को वंही पर ब्रेक लग गया । और एक बात और अपनों मनना पड़ेगा जैसे धूप में शीशा चमता है उसी तरह वो विदेशी महिला चमक रही थी । उसका भी कारण था । उसके कम से कम वस्त्र । उसने सुपर मिनी स्कर्ट पहन राखी थी जिससे उसका आधे से भी जायदा शारीर दिखाई दे रह आता और धूप में चमक रहा था साथ में छोटी सी टीशर्ट जिससे धूप भी टकरा कर शर्मा रही होगी । खुदा कसम वो सच में बाला थी । उम्र कोई २०-२१ कि होगी । मैं बस उसको ही देख रहा था और मेरी सुधबुध खो सी गयी थी । और शायद मुझे ये भी याद नहीं टइ मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ कि तभी चीईईईई कि आवाज़ से किसी ने ब्रेक लगायी तो होश आया कि में एक ठीकठाक रफ़्तार वाली ऑटो के ठीक सामने खड़ा हूँ और शायद मेरी उस स्थिति का अंदाजा उस ऑटो वाले भैया ने भी लगा लिया और वो मुस्कुरा कर बोले कि देखो देखने में कोई बुराई नहीं है पर चश्मा लगा कर । मुझे बड़ी झेप का एहसास हुआ । पर एहसास फिर भी ना जागा । अभी भी दिल था कि मानता नहीं वाला हो रहा था । ध्यान रह रह कर उसी तरफ जा रह आता । ऑटो से बचने के बाद दिल धडकन ने गति पकड़ ली थी । पर उसको अब तक ऑटो नहीं मिली थी । उस दिन मुझे थोडा सा पझ्तावा हुआ कि मैं ऑटो वला क्यों नहीं बन गया । पर कोई नहीं दूर के ढोल हमेशा सुहावने नहीं होते । वो मुझे एस खेल कि शातिर खिलाडी लग रही थी क्योंकि सब ऑटो वाले उससे जायदा कि उम्मीद कर रहे थे पर वो अपने कपड़ो के हिसाब से कम कि । पर ऑटो वाले ठीक उसका औलता सोच रहे थे । उनको चाहिए था ज्यादा । मैंने कुछ देर रुकने का मन बनाया और सोचा कि अब ऑटो करा ही दू तो जायदा अच्छा है ।कंही कुछ उल्टा सीधा न हो जाये । इसी क्रम में में एक पेड का सहारा ले कर खड़ा हो गया और सोचने लगा कि कंही ये मोहतरमा अगर बस में चले तो रोज बस में दंगा भड़क जायेगा और रोज अग्निशमन दल को बस में आग बुझाने केलिए बुलाया जायेगा । पर इसका बस के बाकी लोग कतई बुरा नहीं मानेगे इतना तो मुझे पक्का विश्वास है । और मैं भी सहमंत हूँ । वैसे कई लोगो को मेरा ये व्यव्हार बुरा लग सकता है पर इसमे मेरा कोई दोष नहीं है । अगर आपके चेहरे पर कोई चमकती चीज़ टकराएगी तो आपकी निगाह तो जायेगी ही । और एक बात और कहना चाहता हूँ कि इस व्यक्ति विशेष लक्षण से पता चलता है कि मैं अपने ही पर्यायवाची का नहीं बल्कि अपने बिलोम का प्रेमी हूँ ।
बस में ब्लॉगर और अजीब सी उदासी कल २ दिनों के बाद जो लिखा उससे मेरे कुछदोस्त बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने मुझे थैंक्स लिखने ले लिए , आज पुरे दो दिनों के बाद कलम उठाई , और बहुत अच्छे जैसे कमेन्ट से मेरा उत्साह बढ़ाया । जिसने सच मैंने मुझे एक नए उत्साह का एहसास कराया है । कल ऑफिस मेंफिर थोडा बिजी था पर कल और आज दोनों दिन ब्लॉग लिखने का समय निकल लिया । कल ब्लॉग लिख कर बड़ी ही मस्ती के साथ ऑफिस से निकला । अंदर एक अजीब सा उत्साह था । शायद ब्लॉग लिखें कि खुशी थी या शायद कुछ और जो मैंने नहीं जनता । कल वही अपना घर जाने का समय पुराना था । रात के अँधेरे में एक बस का ब्लॉगर निकलता है जिसे लोगविपुल कहते है । वैसे मजाक मजाक मैं ये लाइन बड़ी अच्छी निकली या खराब ये तो आप ही लोग बताएँगे । खैर २ दिनों के बाद वापस स्टैंड पर एक निश्चितसमय परआनाबड़ाअच्छा लगा और १-२ चेहरे पुराने लगे थोड़े नए भी आ गए थे ।पर बस स्टैंड का माहौल नहीं बदल था एक नयी चीज़ हुई थी कि चूँकिगर्मी अपने चरम पर पहुच चुकी है तो एक के बजाये दो पानी वाले जरूर खड़े हो गए । जो मेरे सामने रहते तक बिजी रहते है । उनको साँस लेने तक कि फुर्सत नहीं रहती है । मेरे ये समझ में नहीं आता ही लोग कितने प्यासे है । चलो इसी बहाने कम से कम उनका तो काम चल जाता है और रोज़ी रोटी भी । लगभग १५ मिनट खड़े होने के बाद बस का आगमन हुआ । मेरी नज़र उस खैनी वाले को ढूंढ रही थी । वो मुझे आज नहीं दिखाई दिया । मैं बस के अंदर था और एक कोने में खड़ा हो गया था । आज अंदर से मन कुछ उखड़ा उखड़ा स लग रह आता । पता नहीं क्या चीज़ थी जो मुझे कम लग रही थी । और कुछ न होने का एहसास दिला रही थी । शायद उसका नाम मुझे नहीं पता था । में रह रह कर तडप रहा था और उसका नाम मेरे जेहन में नहीं आ रहा था । लगभग १० मिनट बाद मुझे सीट नसीब हुई पर ये खुशी भी मुझे ज्यादा देर नसीब नहीं रही और एक बुजुर्ग के आने के बाद वो उनके नसीब में स्तान्तरित हो गयी । मुझे कभी कभी बड़ा कोफ़्त होता है कि जब कोई अच्छी डील डोल वाली युवती बड़े ही दार्शनिक अंदाज़ में इंग्लिश के २ शब्दों में अपने उठने कि प्रार्थना करती है तो जब नारी के आगे विश्वामित्र कि नहीं चली तब तो में साधारण मानव हूँ जिसके अंदर मेरा स्वयं का दिल धक् धक् करता है । पर में किसी महिला के बजाये किसी बुजुर्ग या उम्र दराज महिला को सीट देना ज्यादा सही सोचता हूँ । और मैं खुद महिला सीट पर बैठने से परहेज़ करता हूँ और खड़े हो कर यात्राकरना ज्यादा पसंद करता हूँ । बाकी का सफर मेरा खड़े खड़े गुजरा जिसका मुझे कतई भी गुरेज नहीं है । क्योंकि मेरे से ज्यादा बुजुर्ग को सीट कि जरूरत थी । वैसे मेरे जैसे बस में मैंने कई लोंगों को देखा है जो स्वेक्षा से अपनी सीट बुजुर्ग महिला और पुरूष के लिए छोड देते है । तब मुझे और खुशी होती है । और कुछ लोग मुझे बस में बड़े अछे लगते है क्योंकि वो बस को संगीतमयी बना देते है । उनके नेपाली फोन में लगा बड़ा सा स्पीकर वो ऑफिस से निकलते ही आन कर देते है और पूरे रास्ते वो सबका मनोरंजन करते हुए जाते है । उनको इससे कोई मतलब नहीं कि किसी के साथ कितना चचा हुआ होगा पुरे दिन या कितना बुरा हुआ होगा वो अपनी मस्ती में चूर रहते है । इसमे मैंने कई बुजुर्गो को भी देखा है जो बस में अपने समय के हिट गानों को सुनते है और अपनी ही मस्ती में खोये रहते है । आज खड़े खड़े यात्रा करने में भी एक नया ही आनंद और सुख था ।
आज पूरे दिनों के बाद आपके सम्मुख हुआ हूँ । पिछले दो दिनों से कुछ भी न लिखा पाने का क्षमाप्राथी हूँ । पिछले २ दिन ऑफिस के काम में कुछ ज्यादा ही उलझा हुआ था जिसके कारण मैं अपने निजी ब्लॉग को अपडेट नहीं कर पाया । जिसका मुझे स्वयं बहुत दुःख है । ऐसा नहीं था की मैं ऑफिस के काम मैं इतना खो गया था की मैं थोडा समय भी नहीं निकाल सकता था । पर वो कहते है हरी खोजन को हरी चले हरी पहुचे हरी पास । कुछ ऐसा ही मेरे साथ हुआ जब लिखने का मन करता तो कंप्यूटर खली नहीं मिलता और जब कंप्यूटर खाली मिलता तो लिखने का मन नहीं होता । आज दोनों का मिलन हुआ है तो पुरे दो दिनों के बाद आपके सम्मुख फिर से आया हूँ । मंगल मेरे लिए कुछ खास नहीं हुआ वही ऑफिस की भागदौड और वही काम । जब जाने का समय हुआ तो एक और प्रोजेक्ट चलो उसको भी खत्म किया और जाने की तैयारी शुरू की । जब समय देखा तो थोडा ज्यादा ही बता रहा था । फिर भी मैंने बहुत दिनों के बाद रात में ही बस का सफर करने की सोची । ऑफिस से स्टैंड पर जब पंहुचा तो आज का द्रश्य कुछ और था । और दिन यंह पर भीढ़ हुआ करती थी पर उस दिन सन्नाटा पसरा हुआ था । स्टैंड पर कोई नहीं था । मुझे लगा कंही मैंने आज कोई फैसला गलत तो नहीं ले लिया । लगभग १०-१५ खड़े होने के बाद मैंने देखा की ऑटो वालों की तो लाइन लगी हुई है और वो सब के सब मुझे अपने संभावित सवारी समझ कर मेरे आगे धीरे हो जाते थे । पर मैं तो बस का मुरीद । जैसे गोपियाँ कृष्ण की । कोई भी ऑटो वाला मेरा मन नहीं बदल पाया । मेरे ख्याल से उनकी बहुत से बद-दुआ मुझे लगी होगी । पर मेरा मन तो मेरी बस ले कर अपने साथ चल चुकी थी और अब तक मेरे सामने नहीं आई थी । उफ़ काश मैंने आज फिर कार मांग ली होती । मैंने सोचा था की बस मेरे सामने कड़ी हो गयी । और लग रह आता की जैसे मुस्कुरा रही है की आओ बैठो । मैंने उसकी इस अदा को भापा और बड़े प्यार से चढ गया । बस में ज्यादा सवारी नहीं थी । मेरे ख्याल से सब बस प्रेमी ही थे मैं टिकेट ले कर अपनी सीट पर बैठ गया । देखा कुछ लोग बस में लगभग सो चुके है । कुछ तो इतने गंभीर मुद्रा में सो रह थे की उनको इस बात का पता भी नहीं चलता था की बस कब रुकी और कब चल पड़ी । और लोंगो को मैंने बागी ही अजीब मुद्रा में सोते हुए देखा । किसी की टांग कंही और हाथ कंही और थे पर वो सोते हुए बड़े अच्छे लग रहे थे । मुझे उस दिन कैमरा वाले फोन की कमी सच मैं खली । पर कोई नहीं मेरा कोई हक नहीं बनता की मैंने बस में सोते हुए लोंगों की पिक्चर को अपने ब्लॉग में लगाऊं । टिकेट काटने वाले अंकल भी आधे सो आधे जाग रह थे । पर बस का ड्राईवर पूरी तरह सचेत था । जिसकी मुझे सबसे ज्यादा खुशी थी की ड्राईवर को अपने फर्ज की कितनी चिंता है । वो अपनी पूरी शिद्दत के साथ बस को खाली सड़क पर फोर्मुला वन कि तरह चला रहा था । ड्राईवर से मुझे फोर्मुला वन कि किसी कार मैं बैठे हुए सवारी या साथी का एहसास दिला रह आता फोर्मुला वन क्योंकि बस में हम दोनों ही पूरी तरह जाग रह थे । बाकि सब तो निद्रा में खोये हुए सपनो कि दुनिया मैं खोये हुए थे । आज रात्रि के सफर में मज़ा बहुत आया । समय का तो पता नहीं चला और न जाने कितनी जल्दी मेरा स्टॉप आ गया । स्टैंड पर बिताया हुआ १५ मिनट बस वाले कि रफ़्तार ने कवर कर दिए थे । काश रोज ड्राईवर इसे ही और इतने रफ़्तार में मुझे ऑफिस से घर पंहुचा दे तो क्या कहने । यही सोचता हुआ मैं अपने स्टॉप पे उतर गया ।
कल का दिन वैसे सभी लिहाज़ से शनिवार और रविवार से अच्छा था । कम से कम सोमवार को वो सब नहीं हुआ जो रविवार और शानिवार को हुआ था ।पूरा दिन अच्छे से गुजर गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो । कब १० बजे कब १२ और कब ५ पता ही नहीं चला । हालाँकि काम कुछ खास नहीं किया पर जो किया वो लगन के साथ किया । तो वही वाली बात याद आ गयी की समय बितते देर नहीं लगती । कुछ ऐसा ही सोमवार को हुआ था । मैं भी सोमवार के खतम होने का इन्तजार करने की इच्छा नहीं हुई वो तो अपने आप ही तेजी से खतम हो गया । और मेरे जाने का समय नजदीक आ गया व् कल मेरे एक और मजेदार बात हुई कल मेरे ऑफिस में सबको पता चल गया की मैं एक ब्लॉग का मालिक हूँ । क्योंकि जब में कल का ब्लॉग लिखने में मग्न था तब भी न जाने कब मेरे बॉस मेरे पीछे आ कर विराजमान हो गए पता नहीं चला । और जब तक पता चलता तब तक देर हो चुकी थी । खैर उन्होंने एक ही बात कही की तुम भी ये फालतू चीजों में यकीन करते हो । मैंने कहा सर बड़े बड़े आदमी ऐसा करते है तब तो मैं एक अदना सा इंसान हूँ । उनका दूसरा सवाल था कोई पढता है या नहीं ।या इसे ही ऑफिस में कोई काम नहीं तो लगे लिखने ।मैंने उन्हें आश्वासन दिया की सर कुछ मेरे जैसे ही पढ़ने वाले है जो नित्य मेरा ब्लॉग बड़े चाव से पढते है । ये अलग बात है की कमेन्ट करने में कतराते है । और मुझे उनको खोद खोद कर कमेन्ट लेना पड़ता है । वो भी हसते हुए चले गए और बोले लिखो और लिखो जब कोई न पढे तो हमें बता देना । पर मेरा लिखा उससे प्रभावित नहीं हुआ । मैं उतने ही लगन से लिखें में लगा हुआ था । पता नहीं क्यों आब ये मेरे शाम के समय का एक हिस्सा बन गया है । जिसे में रविवार को मिस करता हूँ । फिर ब्लॉग लिखने के बाद पोस्ट किया और घर जाने की तैयारी भी कर ली । ऑफिस से स्टैंड तक बड़े मज़े में पहुचा । स्टैंड पहुच कर देखा की अभी अभी एक बस निकली है वो भी खाली तो मुझे बड़ा खराब टाइप का लगा । की उफ़ खाली बस थी सीट का भी कोई झंझट नहीं होता और मज़े में घर पहुच जाता । पर होनी को कुछ और लिखा था । लगभग १० मिनट पर मेरी आँखों का विश्वास नहीं हुआ । मैंने आँखों को मलने का प्रयास किया पर वो भी सफल नहीं हुआ क्योंकि जो देखा वो सच था । सामने से पूरी की पूरी बस खली मेरे पास चली आ रही थी । और मेरे सारे शरीर में खून की रफ़्तार को तेज कर रही थी । पर वही हुआ जो होना था बस मेरे स्टॉप पर रुकी और उसने मेरे लिए अपने गेट खोल दिए । मुझे बिलकुल रेड कारपेट वाला अनुभव हो रहा था । जैसे में बस का उद्घाटन कर रहा हू । टिकेट ले कर मैं बहुत दिनों के बाद इस बात का चुनाव नहीं कर पा रहा था की किस सीट पर आज बैठू । क्योंकि मेरे साथ कोई ४-५ लोग और चढ़े होंगे ।उनकी भी हालत मेरी जैसी ही थी । वो भी थोड़े भ्रमित टाइप के हो गए होंगे । क्योंकि इस टाइम पर ऐसा चमत्कार बिरले ही होते है । वो कहवत है न की “बिल्ली के भाग्य से छींका फूटा” । आज हमरी किस्मत थी ।उसके बाद तो पूरी बस राजसी सवारी बन कर चली जा रही थी । मैं सबसे आगे की सीट पर बैठ गया । ये सीट कल बिलकुल बग्गी का एहसास दिला रही थी । और पता नहीं क्यों मुझे बड़ा गर्व लग रहा था उस सीट पर बैठ कर । मैं जितना सुख ले सकता था वो मैंने लिया उसके बाद स्टैंड आने पर अपनी सीट को बड़ी मुश्किल से खाली किया ।
बस हुई खराब और रविवार हुआ बर्बाद पतानहीं कभी कभी मुझे क्या होता है की मेरा मनअचानक किसी काममें नहीं लगता है ।और कभी कभी ऐसा होता है मन या तन मन धन सब के सब उसी में लगता है । इसका कारण मैं आजतक नहीं जान पाया । और आगे का भी कोई इरादा नहीं लगता । इसका भी कारण पता नहीं है । शनिवार को काम कुछ नहीं था । बस चंद लाइन का काम करके परे दिन फरारी कटी ऑफिस में । कभी इधर जाता कभी उधर जाता । क्योंकि कोई काम नहीं था और अगर बॉस के सामने आता तो वो कोई न कोई काम थमा देते जो मुझे करना पड़ता । इससे अच्छा था की झूठे काम का बहाने बनाते रहो और टाइम पास करो । जैसे तैसे दिन पल पल कट रहा था । हर पल पल पल पर भारी था । कभी तो पल मुझे पर भारी पड़ता तो में सोफे पर भरी हो जाता । और झूठे चिंतन की मुद्रा बना कर पल –पल को धोखा देने की कोशिश करता । कभी खुद को लगता की सफल हो गया तो कभी लगता नहीं यार थोडा और काम करना है अभी । चलो जैसे तैसे करके शाम में ५ बजे घर जाने का प्लान बना । अब तो बैचेनी और बढ़ गयी थी। ऑफिस से निकला तो लगा क्यों निकल आया । ऑफिस में ही अच्छा था । मुझे जादू का वो संवाद याद आ गया “धूप” । रोड आज उतनी ही खाली थी जितनी अन्य दिनों भरी रहती है । मैं भी जादू को याद करता हुआ बस स्टैंड की तरफ रवाना हो गया । सोचा की शायद बस जल्दी मिल जाये तो काम बन जाये और में ऑफिस से घर जल्दी पहुच जाऊ पर हाय रे मेरी किस्मत । ऐसा उस दिन भी नहीं हुआ । में बस स्टैंड पर खड़ा खड़ा धूप धूप करता रहा और बस उतनी ही देर से आई और जब आई तो सारी उम्मीदों पर पानी फेरती हुई आई । क्योंकि बस ठसाठस भरी हुई थी । और बड़ी मुशील से एक सुरक्षित जगह पर खड़े होने लायक सीट मिल पाई । अब तो थोडा थोडा गुस्सा भी आ रहा था की ऐसा मेरे ही साथ होता है या कोई और भी इसका भागीदार है जिसे मुझे ही ढूंढ कर अपना गम बांटना पड़ेगा । बस आज अपने रफ्तार पर थी और मुझे लगा की अगर ऐसी ही बस चलती रही हो शायद ये आधे घंटे में मुझे अपने स्टॉप तक पंहुचा दे । पर वो कहावत है न की जब आपकी किस्मत खराब हो तो ऊंट पर भी बैठ जाओ कुत्ता जरूर काट खायेगा । वही कुछ हुआ मेरे साथ । १५ मिनट बाद ही बस खराब हो गयी । और बस ने न चलने की कसम खा ली । अब तो गुस्से के से मेरे साथ साथ कई लोंगो का परा तापमान का साथ दे रहा था । और शायद तभी उस दिन रिकॉर्ड गर्मी थी ।पूरे १ घंटे के करीब धूप धूप करने के बाद बस ने अपनी पुरानी चाल पकड़ी पर इस बार बस नयी थी मतलब दूसरी थी । और मज़े की बात ये थी की इस बार में सीट पर बैठा था और जो पिछली बस में बैठा था वो खड़ा था । मुझे अंदर से थोडा थोडा अच्छा लगने लगा था । इसमे मेरी कोई गलती नहीं है की मैं बैठा ये उस महोदय का ही निवेदन था की मैं बैठ जाऊ । क्योंकि उनका कहना था की वो दिन भर बैठे ही रहते है । तो उनको बस में बैठना उतना पसंद नहीं है । तो उन्होंने अपनी सीट स्वेच्छा से मुझे दे दी । मैं भी बड़ी इच्छा से उस पर विराजमान हो गया । और तब तक रहा जब तक मेरा स्टैंड नहीं आ गया । पर उस दिन का बुरा साया रविवार तक मेरे साथ रहा । जिसने मेरा रविवार बर्बादवार बना दिया ।
बस में चोरी और सब के सब शांत कल ऑफिस से जाते वक्त एक बड़ी अच्छी घटना घटी । उससे पहले बता दू की ऑफिस का दिन बड़ा अच्छा था । कुछ खास हुआ नहीं ऑफिस में । घर जाने का वही पुराना समय चुना और बस की भीढ़ में शामिल हो गया । आज स्टैंड कुछ कुछ मज़ेदार नहीं था । भीढ़ उतनी नहीं थी । और न ही वो खैनी वाले भैया दिखाई दिए । हो सकता है वो आज पहले चले गए हो । मैं बस का इंतज़ार करने लगा । थोड़ी देर में बस भी आ गयी । बस पहले से भरी थी स्टैंड पर आकर वो और भी भर गयी । चड़ने में थोड़ी में थोड़ी म्हणत लगी पर आखिरकार स्टैंड का एक एक आदमी बस में चढ गया । चलो टिकेट ले कर एक सुविधाजनक स्थान देखने की तैयारी करने लगा । वो मिल भी गई । कुछ देर तो बस में कुछ नहीं हुआ । तो में सोचने लगा की क्या कल का ब्लॉग खली रहेगा । मैंने सोचा की अभी तो बस में चढा हू अभी तो पुरे १ से ज्यादा घंटे का सफर है कुछ न कुछ तो होगा ही । मैं यही सोच कर अंदर बाहर देखने लगा । पता नहीं ऐसा मुझे ही लगता है या कुछ और भी है की जब में बस में होता हू तो बाहर अच्छे अच्छे लोंगो को देखता हूँ । जब बाहर होता हू तो बस में अच्छे लोंगों को देखता हूँ । कार में होता हू तो ऑटो में अच्छे लोंगो को देखता हूँ ऑटो में होता हूँ तो कार में तो हमेशा ही अच्छे लोंगो को देखता हूँ । मैं इससे अनजान हू की मेरे साथ ही ऐसा होता है या कोई और भी इसका भुक्त भोगी है । बस इसी उधेड़बुन में बस का सफर चल रहा था । पता ही नहीं चला कब समय का पहिया घूमता गया और मैं अपने घर के पास पहुच गया । पर होनी को मेरे ब्लॉग पर कुछ तो लिखवाना था उसके लिए में ब्लोगमाता का धन्यवाद देना चाहूँगा जिन्गोने अचानक आ कर कुछ ऐसा करवा दिया की पूछो मत । हुआ ये की सन्नाटे को चीरती हुई एक चीख निकली । चीक सुन के लगा किसी का क़त्ल हो गया । पर सनसनी फुनफनी हो गयी । किसी ने किसी की जेब में हाथ मारने की कोशिश की थी और एक महिला ने उसका सजीव प्रदर्शन देख कर चीख निकाल दि थी । उस घटना में चीख ही सबसे अच्छी थी । बाकि सब बेकार क्योंकि जिसकी जेब पर हाथ मारा गया वो कुछ नहीं कर पाया । वो महिला बार बार इशारा कर रही थी की ये चोर है इसने हाथ मारा था पर निरह भीढ़ वही कौन कौन करती रही । बस के दोनों गेट बाद थे । पर फिर भी कोई सीधे हाथ नहीं मार रहा था सब सिर्फ कौन कौन कर रहा था । कोई भी उस चोर को सीधे हाथ नहीं पकड़ रहा था । हालाँकि वो चोर अपना काम पूरा नहीं कर पाया था इस लिए जिसके साथ ऐसा हुआ उसका सब कुछ सुरक्षित था । तो उसको कोई चिंता नहीं थी वो भरी हुई बस में धीरे धीरे आगे बढ़ रहा था । जबकि सबसे ज्यादा उसको चिंता और सजग रहना था । उसको इन सबसे कोई मतलब नहीं था वो तो बस अपनी दुनिया में मग्न था । लग्बह्र ये सिलसिला ५-६ मिनट चला होगा । पर हुआ वही ढाक के तीन पात । उसके बाद जो स्टैंड आया उसमे वो चोर बड़ी ही शांति के साथ नीचे उतर गया । सब देखते रह गए । मुझे कल के दिन और उस दिन में कुछ ज्यादा अंतर नहीं लगा क्योंकि उस दिन भी एक ही आदमी ने आवाज़ उठाई आज भी एक ने ही आवाज़ उठाई । उस दिन जिसके साथ हुआ वो ज्यादा चौकस था आज जिसने देखा वो ज्यादा चौकस था । बाक़ी सब शांत थे । और उसके उतर जाने के बाद वही तमाम बातें । की ये लोग झुण्ड में शिकार करते है जैसे ये भेडिये के वंशज हो । अरे वो चोर हैं एक आवाज़ उठेगी वो सब के सब अलग अलग हो जायेंगे । ये बात हम कब समझेंगे ।
बस में शराबी या शराबीओं की बस कल के प्रेम मिलन के ब्लॉग पर जाने के बाद मिली उन तमाम टिपणी से मेरा ब्लॉग और पूरा शरीर जिसमे बहुत से अभिन्न हिस्से है वो सब खुश है बिलकुल मोगेम्बो की तरह । खैर आज पूरे दो दिन के बाद अपनी रेगुलर बस से ऑफिस आया हूँ । बड़ा अपनापन फील हो रहा था । बस में वही सभी चेहरों को देखते हुए बड़ा फील गुड टाइप का हो रहा था । उसने ऑफिस भी सही टाइम पर पंहुचा दिया । और बखुदा ऑफिस भी बड़ा मस्त रहा पूरे दिन । वही थोडा काम थोडा आराम उस पर थोड़ी मस्ती का बीच बीच में छौंक । पूरे शरीर में एक नयी मस्ती का एस दिलाती है । कल जब ऑफिस से घर जा रहा था तो रास्ते में ऐसा कुछ खास नहीं हुआ जिसे में लिखू । पर बस के इंतज़ार में जरूर ऐसा हुआ लिखने लायक है । एक बहुत ही बुजुर्ग महिला लगभग उन्होंने ८५ से ज्यादा पतझड़ देख लिए होंगे आराम से बड़ी ही मस्त चल से बस क इंतज़ार कर रही थी । उनकी चल से आप ये नहीं कह सकते थे की उनकी उम्र इतनी होगी । पर वो गलत स्टैंड पर सही बस का इंतज़ार करते करते जब थक गयी तो आखिर उन्होंने पूछ ही लिया की फलां बस कब और कान्हा से मिलेगी । चूँकि वो गलत स्टैंड पर थी ओ कुछ लोंगो ने उनको सही रास्ते से परिचित कराया और बिना किसी देर किया चली गयी । मुझे उनकी चल से ले कर ढाल तक सब अच्छी लगी । कमर थोड़ी झुकी थी पर चाल में कोई कमी या खोट नहीं कह सकते थे । और तो और उनकी चल किसी ५० वर्षीय पुरूष से कम नहीं थी । वो जब गयी तो उनके लंबे लंबे पग इस बात को चीख चीख कर कह रह थे । कुछ देर बाधी वो आँखों से ओझल हो गयी और बस में चड़ने का झोल दे गयी । चलो हम भी दूसरों की तरह बस में चढ कर भीढ़ का हिस्सा हो गए । और कल की तरह प्रेम का सेमिफाईनल देखने के लिए बेताब था पर किन्ही कारणों से मैच रद्द हो चुका था । शायद इस बात को मेरे साथ कईयों को अफ़सोस होगा । कल जो हुआ उसके बाद वो मलाल भी चला गया । बस की सवारिओं में से किसी २ लोंगो ने कुछ ग्राम मदिरा (पीने वाली देखने या बोलने वाली मंदिरा नहीं) का सेवन किया हुआ था । तो उनको बस भी गमहीन लग रही थी । उसके बाद उनके वही रेट रटाये डाइलोग की तुम मेरे भाई बाकि सब हाई हैं । मुझे पियक्कड लोंगो के ये बात सबे ज्यादा अच्छी लगती है की २पेग अंदर उसके बाद वो सिकंदर । उनको किसी की परवाह नहीं होती । चाहे फिर प्रधानमंत्री क्यों नहीं आ जाये । मैं इसका भुक्त भोगी रह चुका हू । तो मुझे इसका कुछ ज्यादा ही तजुर्बा है । मेरा एक मित्र हुआ करता था आज कल मुझसे दूर है । वो विशुद्ध हिंदी वासी रहता था मगर और सिर्फ मगर जब वो पीता नहीं था पीने के बाद तो लगता था जैसे महरानी विक्टोरिया के वंसज हो । धाराप्रवाह इंग्लिश बोलता था । मुझे ये आज तक नहीं पता चला ऐसा कैसे हो सकता है । ये यकीन न होने वाली बात है पर ये सच है । ऐसा कुछ बस में हुआ था वो भी पूरा का पूरा इंग्लिश का ज्ञान बस में ही निकाल रहा था । और हिंदी में सिर्फ इतना ही बोलता की चाहे जितनी महगी हो शराब में तो पिऊंगा मेरा दोस्त जो है । आखिर कमाता क्यों हूँ । आखिरी शब्द सुन कर मुझे उसके घरवालों का ख्याल आता होगा क्या शराब बनाने वाले उसके घर पोअर जा कर देखेंगे की एक शराब पीने से उसके घर में रोज क्या क्या होता है । सरकार भी बेबस है क्योंकि टैक्स देने वालों से ज्यादा लोंग शराब पीते है और टैक्स से ज्यादा उनको शराब में मुनाफा आता है । तो क्यों वो सोने की अंडा देने वाली मुर्गी की गर्दन काटे । वो तो भला हो कुछ महापुरुषों का जो उपर जाते जाते कुछ नेक काम कर गए और साल के कुछ दिन ड्राइ दे के नाम हो गए । पर पीने वाले उससे दो कदम आगे रहते है वो एक दिन पहले स्टोर कर लेते है । उनका ये शराब साहित्य चल रहा था पर मेरा स्टॉप आ गया था और मुझे उन बाकी लोंगों पर रोना।
प्रेमी प्रेमिका का मेल और बस में खेल आज का और कल का पूरा दिन मस्त था । ज्यादा काम भी नहीं था और ज्यादा आराम भी नहीं था । सांस ले भी सकता था और छोड़ भी । पूरा दिन ऑफिस की मातापच्ची में गुजर गया । फिर आज मेरी खुमारी भी उतर चुकी थी । तो दिमाग अपनी पूरी रफ्तार पर दौड रहा था । आज मैं अपने आपको कुछ ज्यादा ही एक्टिव महसूस कर रहा था । जैसे कुछ ज्यादा ही शक्ति वाली गोलिया खा ली हो । ऑफिस से निकला तो आज रफ़्तार भी ज्यादा थी । कदमो ने समय से पहले स्टैंड पर पंहुचा दिया । आज कुछ चेहरे नए और पुराने थे । वो खैनी वाला बंदा आज फिर दिखाई दिया । उसकी मुझे एक अदा बड़ी अच्छी लगती है की उसको दुनिया की कोई चिंता नहीं है । वो बस अपनी उँगलियों को अपनी हथेली पर मलता है और उसकी सारी चिंताए दूर होती हुई लगती है । और लगता है वो खैनी से समाधी को ओर जाता हुआ लगता है । ओर लगता है की हर बार उसे मोक्ष की प्राप्ति हो गयी । बस आ चुकी थी ओर में बस के अंदर था । आज का द्रश्य थोडा अलग था । बस के कोने में १ प्रेमी ओर प्रेमिका दुनिया को पूरी तरह से ठेंगा दिखाते हुए इश्क करने में मशगूल थे । उनको इसकी खबर ही नहीं होगी की कल कोई ब्लॉगर उनके बारे में लोंगो को बता भी सकता है । टिकेट ले कर मेरा सौभाग्य उनके पास जाने का हुआ । उनकी बात बड़ी ही मनोरम थी । उनको एस बात का कोई मलाल नहीं था की वो एक सार्वजनिक बस में जिसमे वो एक गैर सार्वजनिक हरकत कर रहे है । पर किसी ने कहा है की प्यार अंधा होता है । पर मुझे व्यत्गित रूप से लगता है की प्यार करने के बाद इंसान अंधा हो जाता है । उसको कुछ खबर नहीं होती दुनिया की । खबर होती है अपनी प्रेमिका की हर छोटी बड़ी चीज़ । उसे वो भूल नहीं सकता चाहे वो अपने घरवालों की दवाई भूल जाये उसे उसका मलाल नहीं होगा पर प्रेमिका की कोई चीज़ अगर भुला तो वो यही कहेगा हे भगवान मुझे उठा ले । पर ऐसा वो घर के लिए नहीं कहेगा । खैर उनमे बस कुछ ही चीज़ की कमी थी वर्ना उन्होंने तो उसे पूरा अपना घर ही समझ लिया था जिसमे कोई नहीं था । हालाँकि देखने वालों को फ्री में शो देखने को मिल रहा था वो स्थिति कुछ विचित्र थी । मेरे ख्याल से मेरे ओर कुछ ओर लोंगो के लिए व् मैं ये नहीं कहता की मैं ढूढ़ का धुला हू पर हाँ पानी से जरूर सुबह खुद को धो लेता हूँ । मेरा उनमे एक बात को ले कर संदेह हो रहा था की उन्होंने क्या खाया ओर पीया होगा जो उनको सब्र नहीं था व् वो एक दूसरे को बड़े ही प्रेम से आलिंगन करते , ओर भी कुछ कुछ करते पर लिखने में उनका बयां नहीं कर सकता था । हालाँकि दिल्ली बड़ी अच्छी अच्छी जगह है इस तरह के प्रेम को व्यक्त करने की पर उन्होंने बस का चुनाव क्यों किया ये संदेह से भरा है । क्या उनके पास पैसे को कमी रही होगी ? पर शक्ल सूरत से तो ठीक थक घर के लगते है । या इसके पिछे कोई गूढ़ कारण रहा होगा । इसका मुझे पता करने की बड़ी जिज्ञासा थी । आजकल मोबाइल फोन के होने कारण हर सस्ते से सस्ते फोन में कैमरा आने लगा है जिसका फायदा कल १-२ ने उठाने की कोशिश की पर ये कोशिश प्रेम के चहेतों ने पूरी नहीं होने दि ओर उनको मन कर दिया । मुझे ये लगता है की अगर उनको सीट न मिली होती तो क्या फिर भी वो ऐसा करते या फिर न करते । क्या ये सीट का खेल था या प्रेम का मेल था । हालाँकि ये मेल और फिमेल का खेल था जिसे पूरी बस ने सजीव देखा और मेरे ख्याल से ये उनके रात में दुर्स्वपन बन कर जरूर आया होगा । मेरा स्टॉप आ गया था पर उनका नहीं । उनका खेल अब सेमिफाइनल पार कर चुका था ।