शनिवार का दिन और आराम

मार्च 29, 2010

शनिवार पूरा दिन बड़ा अच्छा था । ऑफिस भी बड़ा चंगा रहा बहुत दिनों के बाद लगा की आज शनिवार है । चाहे वो घर से ऑफिस जाते वक्त ही पता चल गया था क्योंकि बस ने महज 35 मिनट मैं ही पूरी बस को तमाम सवारियों के साथ मुझे मेरे स्टैंड तक पंहुचा दिया था । तो शनिवार का एहसास तभी से ही होने लगा था । रही सही कसर ऑफिस में पूरी हो गयी । न ज्यादा काम न ज्यादा आराम । चलो जैसे तैसे टाइम ऑफिस मैं काट रहा था । पर लंच के बाद तो एक एक पल पहाड हो गया । पर कर कुछ नहीं सकता था । सो मैं भी एक कहावत को याद करके उसके ही इशारों पर चल रहा था कहावत है बैठा बनिया क्या करेगा इधर का सामान उधर करेगा बस मैं भी फर्जी तरीकों से ऑफिस मैं टाइम पास करने लगा । चूकी मेरे ऑफिस मैं शनिवार को हाफ डे होता है । पर नसीब नहीं मिला क्योंकि कोई न कोई काम आ जाता और सपने सपने रह जाते । पर सनिवार को ऐसा नहीं हुआ हमे रोज की तुलना मैं उस दिन ६ बजे जाने का मौका मिल गया मैं भी बड़ा प्रसन्न था । चलो कभी तो जल्दी फुरसत मिली । तो मैं जल्दी जल्दी घर जाने की खुशी मैं बस पड़ने निकला और सौभाग्य से बस भी तुरंत मिल गयी मैंने कहा वह क्या बात है और तो और एक बेहतरीन सीट भी । पर ये खुशी कुछ देर बाद गायब हो गयी क्योंकि वो बिकलांग सीट थी तो आगे उस सीट से सफल उम्मीदवार आगे मेरा इंतज़ार करते पाए गए । पर इसका मुझे सच मैं कोई अफ़सोस नहीं हुआ । खैर शनि मेरे लिए अच्छा था उस दिन एक सीट खोयी तो तुरंत ही दूसरी मिल गयी । तो शनिवार को मैंने कुछ इस तरह अपनी यात्रा संपन्न की ।
मेरे ख्याल मैं उस दिन के बाद आज मैं बस मन सवार हुआ हूँ और आज सुबह से कुछ नहीं हुआ क्यों की सीट मिलने के बाद मैं सो गया जब उठा तो मेरा सतनद बिलकुल पास था । और मैं आँखें मलते उसे बस से उतर गया ।

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