बस की सीट और महिला
मार्च 30, 2010ये ब्लॉग लिख्नना भी एक तरह का नशा लगता है । ऑफिस से जाते हुए भी लोंगो को ध्यान से देखना और आते हुए भी । ये भी एक तरह का काम ही हुआ मेरा ऐसा ही सोचना है । अब कल की ही बात कर लिजिए । जब मैं ऑफिस से घर जाने लगा तो देखा स्टैंड पर बहुत भीड़ है । मुझे तभी पता चल गया कि आज का सफर मुश्किल ही नहीं बहुत मुश्किल होने वाला है । चलो राम का नाम ले कर बस के आने का इंतज़ार कर रहा था ।तभी देखा दूर से बस को आते हुए साथ मैं आस पास देखा तो लोंगो ने भी शायद उसे आते देख लिया है । वो सब अपनी अपनी मुद्राये बदल रहे थे जैसे युद्ध मैं शत्रु सेना को देख कर विरोधी सेना उनके हमले का जवाब देने के लिए तैयार होती है । उसी तरह स्टैंड पर बाकी लोंगो ने तयारी कर ली थी हुआ भी वही जैसे ही बस आई सब से सब एक ही बस मैं सवारी करना चाहते थे सबसे गनीमत ये रही की बस ठीक मेरे सामने रुकी और मैं सबसे पहले बस मैं चढ गया । फिर तो बाकि का काम भीड़ ने अपने आप कर दिया मतलब हमें अंदर तक जाने मैं कोई मेहनत नहीं हुई सब ने आगे बढ़ो भाई कह कह कर मुझे अपने आप आगे बढा दिया । मुझे सबसे अच्छा यही लगता है की बस मैं चढ़ते और उतरते वक्त कोई नहीं कहता की मैडम या सर सब के सब एक ही सुर मैं कहते है अरे उतरो भाई , क्या आपको यंह उतरना है ,अगर नहीं तो पीछे हटो । चलो मैं बस मैं तो अपने आप चढ गया पर अब सीट के लिए मुझे अपनी नज़र और अपने तजुर्बे का इस्तेमाल करना था । मैं थोडा सा लोजिक लगाता हूँ की जब किसी को उतरना होता है ना तो वो खिडकी से बाहर बहुत देखता है मेरी कोशिश ये होती है की मैं उसके पास जा कर जगह बना कर खड़ा हो जाऊ । और उसके उतरने का इंतज़ार करू । पर कुछ एक्सपर्ट होते है उनको पता होता है कब जगना है मेरा मतलब मैंने देखा है कुछ लोंग सोते रहते है पर ठीक अपने स्टैंड के आने से पहले उनकी नींद खुल जाती है । मैं ये आज तक नहीं समझ पाया की उनमे इतनी सटीक नींद कैसे आती है । मैंने भी कई बार ऐसा करने का प्रयास किया है पर हमेशा यही डर रहता है की कंही स्टैंड न निकल जाये और कंही चेकिंग हुई तो २०० का अतिरित्क शुल्क न लग जाये और पूरे महीने का बजट न बिगड जाये तो नींद ही नहीं आती । वैसे मेरी वो तरकीब काम कर गयी और मुझे १५ मिनट बाद ही सीट मिल गयी । सीट मिल जाये तो एक अजीब सी खुशी मिलती जो शब्दों मैं बया करना मुश्किल है । सीट मिलने के बाद आपको सरे काम याद आते है । आपका मोबाइल अब जेब से निकल कर हाथ मैं आ जाता है और दोस्तों को टेक्सटिंग (sms) करने का मन होने लगता है । मैं भी यही करता हूँ । और पुरे दिन के बेस्ट मैसेज लोंगो को फारवर्ड करना शुरू करता हूँ । बस इसी सफर मैं एक आवाज़ गूंजती है की बतमीज़ देख कर नहीं चलते है । मैंने कहा वो मारा पापड़ वाले को मिली कहानी । मैंने पीछे देखा तो देखा एक ठीक ही ठाक महिला एक नर को २-३ और न लिखने वाले एडजेएक्टिव सुना चुकी थी । वो जनाब बड़े ही शालीनता से सॉरी सॉरी बोल रहे थे पर महिला ने कुछ सोच रक्खा था वो तो बस मोटर की तरह शुरू थी । आपको देख कर चलना चाहिए लड़की देखि नहीं टकरा गए । पर वो जनाब उस तरह के लगते नहीं थे । बड़े ही भद्र लग रहे थे । और जो महिला उपदेश दे रही थी उनको देख कर तो हमें नहीं लगता कोई गबरू जवान भी उनसे टकराने की सोचता । खैर वो महिला और उसकी खूबसूरती पर उसकी अपनी सोच । मैं क्या पूरे बस मैं कोई कुछ नहीं कह सकता था एक ने उनको कहने की कोशिश की तो महिला ने एक कुशल विपक्षी पार्टी की तरह उनको भी इस साजिश में शामिल होने का आरोप लगा दिया । अब तो पूरा बस कुछ भी नहीं कह सकता था । उनका भाषड चालू था कमाल की महिला थी मेरा मनना है की उसको बहुत ही ज्यादा बोलने का शौक था । बस उनको जरुरत थी तो एक मौके की जो उन्हें बस मैं मिल गया । और वो उसे पूरी तरह कैश कर चुकी थी । बस कोई पार्टी उनको देख लेती तो प्रवक्ता जरूर बना लेती । मैं भी पार्टी वार्टी नाता तोड़ कर अपने स्टैंड पर उतर गया ।
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