बस में शराबी या शराबीओं की बस

अप्रैल 16, 2010

बस में शराबी या शराबीओं की बस

कल के प्रेम मिलन के ब्लॉग पर जाने के बाद मिली उन तमाम टिपणी से मेरा ब्लॉग और पूरा शरीर जिसमे बहुत से अभिन्न हिस्से है वो सब खुश है बिलकुल मोगेम्बो की तरह । खैर आज पूरे दो दिन के बाद अपनी रेगुलर बस से ऑफिस आया हूँ । बड़ा अपनापन फील हो रहा था । बस में वही सभी चेहरों को देखते हुए बड़ा फील गुड टाइप का हो रहा था । उसने ऑफिस भी सही टाइम पर पंहुचा दिया । और बखुदा ऑफिस भी बड़ा मस्त रहा पूरे दिन । वही थोडा काम थोडा आराम उस पर थोड़ी मस्ती का बीच बीच में छौंक । पूरे शरीर में एक नयी मस्ती का एस दिलाती है । कल जब ऑफिस से घर जा रहा था तो रास्ते में ऐसा कुछ खास नहीं हुआ  जिसे में लिखू । पर बस के इंतज़ार में जरूर ऐसा हुआ लिखने लायक है । एक बहुत ही बुजुर्ग महिला लगभग उन्होंने ८५ से ज्यादा पतझड़ देख लिए होंगे आराम से बड़ी ही मस्त चल से बस क इंतज़ार कर रही थी । उनकी चल से आप ये नहीं कह सकते थे की उनकी उम्र इतनी होगी । पर वो गलत स्टैंड पर सही बस का इंतज़ार करते करते जब थक गयी तो आखिर उन्होंने पूछ ही लिया की फलां बस कब और कान्हा से मिलेगी । चूँकि वो गलत स्टैंड पर थी ओ कुछ लोंगो ने उनको सही रास्ते से परिचित कराया और बिना किसी देर किया चली गयी । मुझे उनकी चल से ले कर ढाल तक सब अच्छी लगी । कमर थोड़ी झुकी थी पर चाल में कोई कमी या खोट नहीं कह सकते थे । और तो और उनकी चल किसी ५० वर्षीय पुरूष से कम नहीं थी । वो जब गयी तो उनके लंबे लंबे पग इस बात को चीख चीख कर कह रह थे । कुछ देर बाधी वो आँखों से ओझल हो गयी और बस में चड़ने का झोल दे गयी । चलो हम भी दूसरों की तरह बस में चढ कर भीढ़ का हिस्सा हो गए । और कल की तरह प्रेम का सेमिफाईनल देखने के लिए बेताब था पर किन्ही कारणों से मैच रद्द हो चुका था । शायद इस बात को मेरे साथ कईयों को अफ़सोस होगा । कल जो हुआ उसके बाद वो मलाल भी चला गया । बस की सवारिओं में से किसी २ लोंगो ने कुछ ग्राम मदिरा (पीने वाली देखने या बोलने वाली मंदिरा नहीं) का सेवन किया हुआ था । तो उनको बस भी गमहीन लग रही थी । उसके बाद उनके वही रेट रटाये डाइलोग की तुम मेरे भाई बाकि सब हाई हैं । मुझे पियक्कड लोंगो के ये बात सबे ज्यादा अच्छी लगती है की २पेग अंदर उसके बाद वो सिकंदर । उनको किसी की परवाह नहीं होती । चाहे फिर प्रधानमंत्री क्यों नहीं आ जाये । मैं इसका भुक्त भोगी रह चुका हू । तो मुझे इसका कुछ ज्यादा ही तजुर्बा है । मेरा एक मित्र हुआ करता था आज कल मुझसे दूर है । वो विशुद्ध हिंदी वासी रहता था मगर और सिर्फ मगर जब वो पीता नहीं था पीने के बाद तो लगता था जैसे महरानी विक्टोरिया के वंसज हो । धाराप्रवाह इंग्लिश बोलता था । मुझे ये आज तक नहीं पता चला ऐसा कैसे हो सकता है । ये यकीन न होने वाली बात है पर ये सच है । ऐसा कुछ बस में हुआ था वो भी पूरा का पूरा इंग्लिश का ज्ञान बस में ही निकाल रहा था । और हिंदी में सिर्फ इतना ही बोलता की चाहे जितनी महगी हो शराब में तो पिऊंगा मेरा दोस्त जो है । आखिर कमाता क्यों हूँ । आखिरी शब्द सुन कर मुझे उसके घरवालों का ख्याल आता होगा क्या शराब बनाने वाले उसके घर पोअर जा कर देखेंगे की एक शराब पीने से उसके घर में रोज क्या क्या होता है । सरकार भी बेबस है क्योंकि टैक्स देने वालों से ज्यादा लोंग शराब पीते है और टैक्स से ज्यादा उनको शराब में मुनाफा आता है । तो क्यों वो सोने की अंडा देने वाली मुर्गी की गर्दन काटे । वो तो भला हो कुछ महापुरुषों का जो उपर जाते जाते कुछ नेक काम कर गए और साल के कुछ दिन ड्राइ दे के नाम हो गए । पर पीने वाले उससे दो कदम आगे रहते है वो एक दिन पहले स्टोर कर लेते है । उनका ये शराब साहित्य चल रहा था पर मेरा स्टॉप आ गया था और मुझे उन बाकी लोंगों पर रोना 

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